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________________ आगम के अनमोल रत्न ५८१ mmonw धारिणीदेवी अपने स्वप्न का पल सुनकर हर्षित हुई और यत्न पूर्वक गर्भ का पालन करने लगी। दो मास के बीत जाने पर और तीसरे मास के गर्भ काल में धारिणी रानी को अकाल मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ। वह सोचने लगी-बिजली सहित गजेता हुए मेघ से छोटी छोटी बूंदे पड़ रही हों, सर्वत्र हरियाली छाई हुई हो, वैभार गिरि के प्रपात, तट और कटक से निर्झर निकल कर वह रहे हो, मेघ गर्जना के कारण हृदय तुष्ट होकर नाचने की चेष्टा करने वाले मयूर हर्ष के कारण मुक्त कण्ठ से केकारव र रहे हों-ऐसे वर्षा काल में जो माताएँ स्नान करके, सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हो करके वैभारगिरि के प्रदेशों में अपने पति के साथ विहर करती हैं, वे धन्य हैं। यदि मुझे भी ऐसा योग मिले तो वैभारपर्वत के समीप क्रीडा करती हुई मै अपना दोहद पूर्ण करूँ । धारिणी रानी की इच्छा पूरी न होने से वह प्रतिदिन दुर्वलहोने लगी । अंगपरिचारिकाओंने राजा को इस बात की सूचना दी । अंगपरिचरिकामों द्वारा रानी के दुर्वल होने का समाचार सुनकर राजा शीघ्र गति से रानी के पास आया और बोला-देवानुप्रिये ! तुम्हारे दुर्बल होने का क्या कारण है ? तुम इस प्रकार चिन्तामन क्यों बैठी हो ? राजा के अत्यन्त आग्रह पर रानी ने अपने दोहद की बात कही। राजा ने उसे माश्वासन देते हुए कहा-प्रिये । मै ऐसा प्रयत्न करूँगा जिससे तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही पूर्ण होगी । इस प्रकार राजा रानी को -आश्वस्त कर वापस अपने महल में चला आया । रानी के दोहद को पूरा करने का यह उपाय सोचने लगा किन्तु उसे कोई उपाय न मिला । इसी समय अभप्रकुमार अपने पिता को वन्दन करने के लिए वहीं आया। पिता को चिन्तामन देखकर अभयकुमार ने पूछा-पिताजी! आप चिन्तामन क्यों दिखाई दे रहे हो ? क्या मै आपकी चिन्ता का कारण जान सकता हूँ ? इस पर श्रेणिक बोला-पुत्र ! तुम्हारी माता धारिणी को अकाल मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ है उसे पूर्ण
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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