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________________ आगम के अनमोल रत्न ५७९ द्धिक है । भगवान से समाधान पाकर गंगदत्तदेव अपने स्थान चला बाया । गंगदत्तदेव के चले जाने के बाद गोतम स्वामी ने गंगदत्त को ऋद्धि सम्पदा विषयक प्रश्न पूछा । भगवान ने गंगदत्त का पूर्व जन्म बताया और कहा-गंगदत्त महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध बुद्ध होगा। परिनिर्वाण को प्राप्त करेगा। रोहा अनगार रोहा अनगार भगवान महावीर के विनीत एवं भद्र प्रकृति के शिष्यों में से एक थे। एक बार भगवान राजगृह पधारे। रोहा अनगार भी भगवान के साथ थे। वे एक बार भगवान से कुछ दूर बैठे तत्त्व चिन्तनं कर रहे थे । लोक विषयक चिन्तन करते हुए उन्हे कुछ शका उत्पन्न हुई । वे तुरन्त उठकर भगवान के पास आये और वन्दन कर बोले- भगवान् । पहले 'लोक' और पीछे 'अलोक' या पहले अलोक और पीछे 'लोक' ? भगवान ने उत्तर दिया-रोह ! लोक और अलोक दोनों पहले भो कहे जासकते हैं और पीछे भो। ये शाश्वत भाव हैं। इनमें पहले पीछे का क्रम नहीं। ___ इस प्रकार रोहा अनगार ने जीव, भजोव, भवसिद्धिक, अभवमिद्धिक, सिद्धि, असिद्धि, सिद्ध, असिद्ध, अण्डा या मुर्गी, लोकान्त और अलोकान्त, लोक सप्तम अवकाशान्तर, लोकान्त सप्तम तनुवात, लोकान्त धनवात लोकान्त धनोदधि लोकान्त सप्तम, पृथ्वी पहले या पीछे का क्रम पूछा । भगवान ने सबका उत्तर देते हुए कहा-ये दोनों ज्ञात भाव हैं। इनमें पहले पीछे का कोई क्रम नहीं है। भगवान के उत्तरों से रोहा अनगार बड़े संतुष्ट हुए और सयत की साधना कर मुक्त हुए । मेघकुमार राजगृह नगर में महाराज श्रेणिक राज्य करते थे। उनकी बड़ी गनी का नाम नन्दा था । गिक का पुत्र और नन्दादेवी का भात्मज
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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