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________________ १९७४ आगम के अनमोल रत्न थोड़े ही समय में उसे ज्ञान हो गया कि उसका ज्ञान प्रान्तिपूर्ण था। अब उसने भगवान महावीर की शरण में जाने के लिये शंखबन की ओर प्रस्थान कर दिया । समवशरण में पहुँच कर विधिपूर्वक वन्दन नमस्कार कर वह उचित स्थान में बैठ गया। भगवान का उपदेश सुनकर पोग्गल भगवान के पास दीक्षित हो गया । स्थविरों के पास उन्होंने एकादशांग का अध्ययन किया तथा विविध तपों द्वारा कर्ममुक्त हो निर्वाण प्राप्त किया । ४ कार्तिक सेठ हस्तिनापुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था। वहाँ एक हजार आठ वणिकों का नायक कार्तिक नाम का श्रेष्ठी रहता था । वह श्रमणोपासक था । एक समय मासोपवासी एक तापस वहाँ आया । कार्तिक सेठ को छोड़ सभी नगर निवासी तापस के भक्त हो गये थे। तापस को यह पता लग गया कि कार्तिक मेरी भक्ति नहीं करता । उसने कार्तिक को झुकाने का निश्चय किया । एक बार राजाने तापस को भोजन का निमंत्रण दिया । तापस ने कहा-"अगर कार्तिक सेठ अपने हाथों से मुझे भोजन परोसेगा तो मैं तेरे यहाँ भोजन करूँगा ।" राजा ने यह बात मानली । तापस भोजन के लिये आया । राजा ने कार्तिक सेठ को बुलाकर तापस को भोजन परोसने की आज्ञा दी। राजाज्ञा को ध्यान में रख कातिक सेठ तापस को भोजन परोसने लगा। भोजन खाते खाते तापस "मैंने तेरी नाक को काट लिया है" इस बात को सूचित करने के लिये बार बार उंगली से नाक को रगड़ता जाता था। तापस की इस कुचेष्टा को देख कार्तिक सेठ मन में सोचने लगा-'अगर मैं पहले ही दीक्षा ले लेता तो ऐसी विडम्बना नहीं सहन करनी पड़ती। ऐसा विचार कर वह अपने घर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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