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________________ आगम के अनमोल रत्न जाकर विनय, वन्दन नमस्कार सेवा और धार्मिक चर्चा करने का तो कहना ही क्या ? प्रिये ! चलें हम भी भगवान महावीर का वन्दन नमस्कार और सेवा भक्ति करें। यही कार्य हमारे ऐहिक तथा पारलौकिक हित और कल्याण के लिये होगा। स्वामी के मुख से उक्त प्रस्ताव सुनकर देवानन्दा को बड़ा संतोष हुआ और उसने सहर्ष पति के वचनों का समर्थन किया । ऋषभदत्त ने सेवकजनों को रथ तैयार करने को कहा । वे स्वामी की आज्ञा पाते ही धार्मिक रथ को तैयार करके तुरन्त उपस्थान शाला में ले आए। ऋषभदत्त और देवानन्दा ने स्नान किया । अच्छे अच्छे वस्त्र पहने और दास दासियों के परिकर के साथ रथ में बैठे । रय बहुसाल उद्यान में पहुँचा । भगवान की धर्मसभा दृष्टिगोचर होते ही रथ ठहरा लिया गया और दोनों पतिपत्नी आगे पैदल चले । विधि पूर्वक सभा में जाकर वन्दन नमस्कार करके बैठ गये । देवानन्द। निनिमेष नेत्रों से भगवान महावीर को देख रही थी। उसके नेत्र विकसित हो रहे थे, स्तनों से दूध का स्राव हो रहा था। रोमाञ्च से उसका सारा शरीर पुलकित हो उठा था । देवानन्दा के इन शारीरिक भावों को देख कर गौतम ने भगवान से प्रश्न कियाभगवन् ! आपके दर्शन से देवानन्दा का शरीर पुलकित क्यों हो गया ? इनके नेत्रों में इस प्रकार की प्रफुल्लता कैसे आ गई और इनके स्तनों से दूध-साच क्यों होने लगा ? ____भगवान ने उत्तर दिया-गौतम ! देवानन्दा मेरी माता है और मैं इनका पुत्र हूँ । देवानन्दा के शरीर में जो भाव प्रकट हुआ है उनका कारण पुत्रस्नेह ही है। इसके वाद भगवान ने उस महती सभा के सामने धर्मोपदेश किया। सभा के विसर्जित होने के बाद ऋषभदत्त उठा और बोला-भगवन् । आपका कथन यथार्थ है । मै आपके धर्म में प्रवजित होना
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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