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________________ आगम के अनमोल रत्न हो न ? क्या यह बात सच है ? स्कन्धक ने कहा-हाँ, गौतम ! यह बात सच है परन्तु हे गौता। मुझे यह बतलाओ कि कौन ऐसा ज्ञानी या तपस्वी पुरुष है जिसने मेरे मन की गुप्त वात तुम से कह दी और तुम मेरे मन की गुप्त वात आन गये । , तब गौतमस्वामी ने उत्तर दिया-हे स्कन्धक ! मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीरस्वामी सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी है । उन्होंने ही तुम्हारे मन की गुप्त वात मुझ से कही और मैने जान ली । हे गौतम । मैं ऐसे ज्ञानी भगवान के दर्शन करना चाहता हूँ। बताइये वे कहाँ हैं ? इसके बाद स्कन्धक परिवाजक गौतमस्वामी के साथ जहाँ श्रमण भगवान थे वहाँ आया और भगवान के दिव्य शरीर वैभव' को देख कर चमत्कृत हो गया। उसने तीन बार भगवान को वन्दन किया और विनय पूर्वक भगवान की सेवा में बैठ गया । भगवान ने कहा-स्कन्धक । पिगल श्रावक के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का समाधान पाने के लिये ही तुम्हारा यहाँ आगमन हुआ है न ? स्कन्धक ने कहा-हाँ भगवन् । इन्हीं का समाधान पाने के लिये ही यहाँ आया हूँ । भगवान ने कहा-सुनो इनका समाधान इस प्रकार है-हे स्कन्धक । लोक चार प्रकार का है-द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक, और भावलोक, द्रव्य से लोक एक है, भन्त सहित है। क्षेत्र से लोक असंख्यात कोड़ाकोड़ी योजन लम्बा चौड़ा है अतः अन्त सहित है । काल से लोक भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्यत् काल में रहेगा । ऐसा कोई काल न था, न है और न रहेगा जिसमें लोक न हो। लोक था, है, और रहेगा । वह ध्रुव है, नियत शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है, अन्तरहित है । भाव से लोक अनन्त वर्ण पर्यायरूप है, अनन्त गन्ध, रस, स्पर्श पर्यायरूप है, अनन्त गुरु लघु-स्थूल स्कन्म भाठ स्पर्श वाले शरीरादि पर्याय रूप है और अनन्त लघु धर्मास्तिकायादि भरूपी तथा चौस्पर्शी सूक्ष्म स्कन्धादि पर्याय रूप है।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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