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________________ भागम के अनमोल रत्न विचार उत्पन्न हुआ कि धन्य हैं वे प्राम नगर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचरण करते हैं । अगर भगवान यहाँ पधारे गे तो मैं भी उनके पास दीक्षा ग्रहण करूँगा । भगवान अपने विशिष्ठ ज्ञान से भद्रनन्दी कुमार के विचार को जान गये और वे प्रामानुग्राम विच-- रण करते हुए ऋषभपुर पधारे भगवान की सेवा में पहुँचकर भद्रनन्दी कुमार ने मुनि दीक्षा ग्रहण की । मुनि दीक्षा के बाद अगसूत्रों का अध्ययन किया । उसके बाद उन्होंने कठोरतप किया । अन्त में मासिक सलेखना करके उन्होंने देह का त्याग किया। वे मरकर देवलोक में गये। वहाँ से सुबाहुकुमार की तरह ही देव भव और मनुष्य भव को ग्रहण करता हुआ अन्त में महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा। सुजातकुमार वीरपुर नामका नगर था । यहाँ मनोरम नाम का उद्यान था । वहाँ महाराज वीरकृष्ण का राज्य था । उनकी रानी का नाम श्रीदेवी था । सुजातकुमार उनका पुत्र था। वलश्री आदि प्रमुख पाचसौ कन्याओं से सुजातकुमार का विवाह हुआ था । श्रमण भगवान महावीर का नगर में आगमन हुआ। सुजातकुमार ने भगवान की वाणी सुनकर श्रावक के व्रत ग्रहण किये । सुजातकुमार के पुनर्जन्म के विषय में गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया । उत्तर में भगवान ने फरमाया कि-सुजातकुमार पूर्वजन्म मे इक्षुसार नगर में ऋषभदत्त नाम का संपन्न गृहपति था । इसने पुष्पदंत नाम के तपस्वी अनगार को श्रद्धापूर्वक आहार दान दिया। इसीसे सुजात-- कुमार को इस जन्म मे दिव्य ऋद्धि तथा सौम्य आकृति प्राप्त हुई है। भगवान महावीर ने वहां से जनपद में विहार कर दिया । पुन भगवान महावीर का वीरपुर में आगमन हुआ । नगर की जनता के साथ सुजातकुमार भी भगवान के दर्शन के लिए गया । भगवान के उपदेश सुनकर सुजातकुमार ने अपने माता पिता से पूछप्रवज्या ग्रहण कर लो। अनेक वर्ष तक चारित्र का पालन कर अन्त में
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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