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________________ अगम के अनमोल रत्न ५५३ आहार देते समय उसके भाव इतने शुद्ध थे कि उनके प्रभाव से उसने - उसी समय मनुष्य सम्बन्धी आयु का पुण्य बन्ध कर लिया । संसार को संक्षिप्त किया। उस समय उसके घर में देवों ने सुवर्ण की दृष्टि की । पांच वर्ण के फूल और बहुमूल्य वस्त्र बरसाये । देवदुदुभियाँ बज उठीं। आकाश में रहकर देवतागण अहोदान महोदान की घोषणा करने लगे । हस्तिनापुर के नगरवासी भी • कहने लगे-सुमुख गाथापति धन्य है, कृतपुण्य है, इसने मनुष्य जन्म को तथा जीवन को सफल कर लिया है । हे गौतम ! इस सुमुख गृहपति का पुण्यशाली जीव ही धारिणी देवी के गर्भ में आकर सुबाहुकुमार के रूप में जन्म ग्रहण किया है । उसने पूर्वजन्म में सुपात्र को दान देकर ही यह मनुष्य सम्वधी दिव्यऋद्धि और इष्ट मनोहर एवं सौम्य रूप प्राप्त किया है । पुनः गौतम ने भगवान से प्रश्न किया- भगवन् ! यह सुत्राहुकुमार क्या आपके पास दीक्षा ग्रहण करेगा । उत्तर में भगवान ने कहा - अवश्य यह दीक्षा ग्रहण कर देवगति प्राप्त करेगा और देवगति से च्युत होकर वह महाविदेह में सिद्धि प्राप्त करेगा । इसके बाद भगवान महावीर ने अपनी शिष्य मण्डली के साथ पुष्पकण्टक प्रधान के कृतवनमाल नामक यक्षायतन से विहार कर अन्य देश में भ्रमण करना आरम्भ कर दिया । अव सुवाहुकुमार भी भगवान के द्वारा प्रतिपादित जीवादि तत्वों का जानकर हो गया । वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि तिथियों में पौषत्र करता हुआ अधिक से अधिक भरने जीवन को संयमी बनाने लगा | एक समय पौषध व्रत में रात्रि के समय धार्मिक जागरण करता हुआ सोचने लगा-धन्य है वे ग्राम, नगर, देश और सन्निवेश आदि स्थान जहाँ पर श्रमण महावीर स्वामी का विचरण होता है । वे राजा, महाराजा और सेठ साहूकार भी बड़े पुण्यशाली है जो श्रमण महावीर के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करते हैं और उनके चरणों
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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