SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न हुए स्वप्न में देखा । इस स्वप्न के बाद जब धारिणी रानी जागी तो -उसका फल जानने की उत्कण्ठा से वह उसी समय अपने पति महाराज अदीनशत्रु के पास पहुंची और मधुर तथा कोमल शब्दों से उन्हें जगा कर अपने स्वप्न को कह सुनाया । स्वप्न सुनाने के बाद वह बोलीप्राणनाथ ! इस स्वप्न का फल बतलाने की कृपा करें। महारानी धारिणी से स्वप्न सुनने के बाद महाराजा भदीनशत्रु ने कहा-प्रिये ! तुम्हारा यह स्वप्न बहुत उत्तम भऔर मंगलकारी है। इसका फल अर्थलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। तुम्हें एक सुयोग्य पुत्र की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा । स्वप्न का फल सुनकर यारिणी प्रसन्न हुई और उन्हें प्रणाम कर अपने शयनस्थान पर लौट आई। किसी अन्य दुःस्वप्न से उक्त स्वप्न का फल नष्ट न हो जाय इस विचार से फिर वह नहीं सोई किन्तु शेष रात्रि धर्म जागरण में ही व्यतीत की। ____ अपने गर्भकाल में महारानी बड़ी सचेत रहती थी । खान, पान का पूरा ध्यान रखती थी । अधिक उष्ण, अधिक ठंडा, अधिक तीखा या अधिक खारा भोजन करना उसने त्याग दिया था । हित और मित भोजन तथा गर्भ को पुष्ट करने वाले अन्य पदार्थों के यथाविधि सेवन से वह अपने गर्भ का पोषण करने लगी। ___ नवमास के पूर्व होने पर उसने एक सर्वांग सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । जातकर्मादि संस्कारों के कराने के वाद उस नवजात शिशु का 'सुवाहुकुमार' ऐसा गुणनिष्पन्न नाम रखा। उसके बाद क्षोरधात्री, मण्डनधात्री, क्रीडापनधात्री, अधात्री और मज्जनधात्री इन पांच धाय माताओं की देखरेख में वह गिरिकंदरागत लता तथा द्वितीया के चन्द्र की भाँति बढ़ने लगा। जब वह आठ वर्ष का हुआ तव माता 'पिता ने शुभ मुहूर्त में उसे कलाचार्य के पास सुयोग्य शिक्षा के लिये भेज दिया । कलाचार्य ने अल्प समय में ही उसे पुरुष की ७२ कलाओं मैं निपुण कर दिया और उसे महाराज को समर्पित किया । अव
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy