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________________ आगम के अनमोल रत्न के मंत्रीपद पर नियुक्त थे। इन्होंने भगवान महावीर के समीप दीक्षा -ग्रहण की। कठोर तप किया । पांच वर्ष तक संयम का पालन कर विपुलगिरि पर इन्होंने अनशन किया । मृत्यु के बाद ये विश्य विमान में देव रूप से उत्पन्न हुए । वहाँ का आयुष्य पूरा कर ये महाविदेह में सिद्धि प्राप्त करेंगे। धन्य अनगार काकन्दी नाम की नगरी थी। उस नगर के बाहर सहस्रम्रवन नाम का उद्यान था। जिसमें समस्त ऋतुओं के फल और फूल सदा रहते थे। वहाँ जितशत्रु नाम का राजा राज्य करता था। उस नगरी में भद्रा नाम की सार्थवाही रहती थी। उसके पास बहुत बड़ी सम्पत्ति थी। उस सार्थवाही के धन्यकुमार नाम का पुत्र था । उसने बहत्तर कलाओं का अध्ययन किया। भद्रा सार्थवाही ने अपने पुत्र धन्य के लिए बत्तीस सुन्दर प्रासाद बनवाये जो विशाल और उत्तंग थे उनके मध्य में अनेक स्तंभों पर आधारित एक भवन वनवाया । धन्यकुमार का बत्तीस इभ्यकन्याओं के साथ विवाह हुआ। उसे बत्तीस दहेज मिले । वह ऊँचे प्रासादों में अपनी बत्तीस पत्नियों के साथ सुखभोग में लीन हो गया। उस समय भगवान महावीर काकन्दी नगरी में पधारे । परिषद निकली। जितशत्रु राजा भी दर्शनार्थ निकला । धन्यकुमार भी साज सज्जा के साथ पैदल चलकर ही भगवान की सेवा में पहुँचा । भगवान का उपदेश सुनने के बाद धन्यकुमार ने भगवान से कहा-मै माता भद्रासार्थवाही से पूछकर देवानुप्रिय के पास प्रवज्या ग्रहण करूँगा। ___घर आकर धन्यकुमार ने अपनी मां से अनुमति प्राप्त कर ली। भद्रासार्थवाही ने एवं राजा जितशत्रु ने धन्यकुमार का दीक्षा महोत्सव किया। धन्यकुमार प्रबजित होकर अनगार बन गये । इर्यासमिति से युक्त गुप्त ब्रह्मचारी हो गये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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