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________________ आगम के अनमोल रत्न इस प्रकार इषुकार नगर के छहों जनों ने दीक्षा ग्रहण कर कठोर तप किया । घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में अनशन कर मोक्ष में गये । संजय राजर्षि कांपिल्यपुर नगर में संजय नाम का राजा राज्य करता था। पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से उसके यहाँ सेना हाथी, घोड़े और वाह. नादि सभी कुछ विद्यमान थे। वह एक दिन शिकार खेलने के लिये नगर से बाहर निकला । साथ में घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेना भी थी। वह केशर उद्यान में पहुँचा और वहाँ रहे हुए मृगों का शिकार खेलने लगा। उसी उद्यान में गर्दभाली नाम के तपरवी वृक्ष के नीचे बैठे हुए ध्यान कर रहे थे । राजा के बाणों से घायल मृग मुनिराज के पास आ आकर गिरने लगे। कुछ मृग वहीं मर गये। रस लोलुप राजा घोड़े पर चढ़कर मृत मृगों के पास आया । उसने एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ मुनि को देखा । उन्हें देखकर वह भयभीत हुआ और सोचने लगा, "ये मृग मुनि के ही लगते हैं। मैने मुनि के मृगों को मार कर अच्छा नहीं किया।" वह तत्काल घोड़े से नीचे उतरा और मुान के पास गया और उन्हें वन्दन कर बोला "हे भगवन् ! मेरे अपराध को क्षमा कीजिये। मुनि ध्यान मग्न थे। उन्हें बाहरो वातावरण का कुछ भी पता नहीं था । राजा के दो तीन बार क्षमा मांगने पर भी मुनि ने उसका कुछ जबाब नहीं दिया । मुनि को मौनस्थ देखकर राजा और भी भयभीत हो गया । उसने पुनः नम्रभाव से कहा--- "हे भगवन् ! मैं कोपित्यपुर का राजा संजय हूँ। मैं अपने अपराध की क्षमा मांग रहा हूँ। आप मेरी क्षमा याचना का प्रत्युत्तर दें क्योंकि कुपित तपरवी अपने तप-तेज से हजारों प्राणियों को जलाकर भस्म कर देने का सामर्थ्य रखते हैं।"
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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