SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर चरित्र भी पोषण करते रहें । इस तरह कपट करने से पीठ और महापीठ को स्त्री वेद का वन्ध पड़ गया। स्त्री वेद का बन्ध करने के कारण पीठ मुनि का जीव ब्राह्मी और महापीठ का जीव सुन्दरी के रूप में जन्म लेगा । वाहुमुनि का जीव भरत चक्रवर्ती के रूप में, एवं सुबाहुमुनि वाहुबलि के साथ में जन्म ग्रहण करेंगे । सारथी सुयशा मुनि का जीव भगवान ऋषभ को ईक्षुरस का दान देनेवाले श्रेयांसकुमार के रूप में जन्म ग्रहण करेगा। इन छहों मुनिराजों ने निरतिचारपूर्वक चौदह लाख वर्ष तक चारित्र का पालन किया। वज्रनाभ मुनि की कुल ८६ लाख पूर्व की भायु थी । जिनमें तीसलाख पूर्व कुमारावस्था में सोलह लाख पूर्व माडलिक अवस्था में २४ लाख पूर्व चक्रवर्ती पद एवं २४ लाख पूर्व श्रामण्य अवस्था में व्यतीत किये। अपनी अन्तिम अवस्था में इन छहों मुनिराजों ने पादोपगमन अनशन ग्रहण किया और समाधिपूर्वक देह को त्याग कर मुनिराज तैतीस सागरोपम की उत्कृष्ट आयुवाले सर्वार्थसिद्ध विमान में देव बने । कालचक्र काल की उपमा चक्र से दी जाती है । जैसे गाड़ी का चक्र (पहिया) घूमा करता है वैसे ही काल भी सदा घूमता रहता है। वह कभी भी एक सा नहीं रहता । काल का स्वभाव ही परिवर्तनशील है । उत्कर्ष और अपकर्ष ये दोनों सापेक्ष -हैं । जहाँ उन्नति है वहाँ अवनति भी है और जहाँ अवनति है वहाँ उन्नति भी है । जो उठता है वह गिरता भी है और जो गिरता है वह उठता भी है । घूमते समय-चक्के का जो भाग ऊँचा उठता है, वह नीचे भी जाता है और जो भाग नीचे जाता है वह ऊपर भी आता है । यही ससार की दशा है । एक वार वह उन्नति से अवनति की ओर जाता है तो दूसरी बार अवनति से उन्नति की भोर जाता है ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy