SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न दो आदमी बरे ! यह जहरा व पुनः उत्त चालकों को खेलता देख वह भी उनके साथ खेल खेलने लगा था। किसी बात को लेकर हरिकेशबल का बालकों के साथ झगड़ा हो गया । वह उन्हें मारने लगा । बालकों को मारता देख हरिकेश का पिता वहाँ आया और उसे पकड़ कर वहां से मार पीट कर निकाल दिया अपने पिता से तिरस्कृत हरिकेशवल वहाँ से चल पड़ा और एक धूल की टेकरी पर जाकर बैठ गया । सभी लोग उत्सवमग्न थे। इतने में एक काला विषधर सर्प निकला । लोग भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे। कुछ लोगों ने साहस कर के प-थरों और लाठियों के प्रहार से सर्प को मार डाला । लोग पुनः उत्सव में मग्न हो गये । थोड़े समय के बाद दुही सर्प निकला । सर्प को देखकर एक दो आदमी चिल्ला उठे । मारो, मारो, सर्प निकला है। इतने में एक ने कहा-अरे ! यह जहरीला सांप नहीं है इसे मारने से क्या लाभ ? लोगों ने उसे मारा नहीं । वे पुनः उत्सव में मग्न हो गये। यह स्व श्य टेकरी पर बैठा हरिकेशटल देख रहा था। वह मन में सोचने लगा-जिसमें जहर हैं उसी की ही यह दुर्दशा होती है। और जिसमें विष नहीं है उसको कोई भी नहीं सताता । मेरा स्वभाव विषधर की तरह है इसलिये मेरा सब तिरस्कार करते हैं । अगर मै भी विष रहित सद्गुणी होता तो मेरी यह दुर्दशा नहीं होती । अब मुझे ऐसा मार्ग अपनाना चाहिये जिससे मैं भी सद्गुणी और लोकपूज्य बनें ।" ऐसा सोचकर वह वहां से चला । मार्ग में उसे एक सन्त मिले । सन्त का उपदेश सुनकर उसने कहा--भगवन् ! आपका मार्ग श्रेष्ठ है और मेरी इच्छा भी आपके मार्ग पर चलने की है, किन्तु मैं जाति का चाण्डाल हूँ। मुनि ने कहा-चाण्डाल होने से क्या हुआ ? भगवान महावीर के शासन में सभी प्राणियों को धर्म करने का अधिकार है। मुनि का वचन सुनकर हरिकेशबल ने दीक्षा ले ली। मुनि के पास रहकर उन्होंने श्रुत का अध्ययन किया। वे अल्प
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy