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________________ आगम के अनमोल रत्न गया । वैद्योंने अनेक उपाय किये किन्तु नमि की दाह-पीड़ा शान्त नहीं हुई । अन्त में किसी अनुभवी वैद्य ने कहा कि बावना गोशीर्ष चन्दन का लेप करने से यह ज्वर शान्त होगा । रानियाँ उसी समय चन्दन घिसने लगीं। रानियों के हाथ में पहनी हुई चूड़ियों की आवाज से नमिराज की व्यथा और भी बढ़ गई । उन्होंने मन्त्री को बुलाकर कहा-"चूड़ियों की आवाज से मेरी व्यथा बढ़ रही है ! इसे बन्द करो ।" रानियाँ चतुर थी। वे सब की सब पति की शान्ति के लिये ही चन्दन घिस रही थीं। उन्होंने उसी क्षण सौभाग्य के चिह्न रूप एक-एक रख कर शेष तमाम चूड़ियाँ उतार दीं। वे पुनः चन्दन घिसने लगीं विन्तु सारे महल में नीरव शान्ति छा गई । सहसा शान्ति छा जाने से थोड़ी देर के बाद नमिराज ने मन्त्री से पूछा- "क्या चन्दन घिसा जा चुका ?" मन्त्री ने कहा-"नहीं महाराज ! घिसा जा रहा है ।" नमिराज ने प्रश्न किया-"तो अब उनका शब्द क्यों नहीं होता है ?" मन्त्री ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा-"महाराज ! सौभाग्य सूचक एक-एक चूड़ी को हाथ में रखकर शेष तमाम चूड़ियों को रोगियों ने निकाल दिया है । अब अकेली चूड़ी खनके तो किसके साथ खनके।" इस बात को सुनते ही नमिराज का सुषुप्त मानस जाग उठा । वे सोचने लगे- "जहाँ अनेक्त्व है वहीं कोलाहल और अशान्ति है। एकत्व में ही सच्ची शान्ति और आनन्द है ।" यह सोचते-सोचते उन्हे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । अपने पूर्व जन्म का निरीक्षण करने के बाद नमिराज का मानस वैराग्य रंग में रंग गया । अब उन्हें रमणियों की नुपूर झंकार और कंकण ध्वनि काँटे की तरह चुभने लगी । शान्ति प्राप्ति के लिये समस्त बाह्य बन्धनों का त्याग कर एकाकी विचरने की उन्हें तीव्र इच्छा जागृत हुई । व्याधि शान्त होते ही वे योगिराज राजपाट एवं बिलखती हुई रानियों के स्नेह बन्धन को तोड़कर, मुनि बनकर एकाकी विचरने लगे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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