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________________ आगम के अनमोल रत्न जब देवो वापस आई तो दोनों माकन्दीपुत्रों को महल में नहीं पाया । तब वह उन्हें खोजने के लिए पूर्व, पश्चिम और उत्तर के वनखण्ड में गई वहाँ जब वे न मिले तो वह समझ गई कि माकन्दी पुत्र मेरे हाथ से निकल भागे हैं । उसने अवधिज्ञान से देखा कि दोनों भाई शैलक यक्ष की पीठ पर सवार होकर चम्पा की ओर भागे जा रहे हैं । उसी क्षण उसने विकराल और भयंकर रूप बनाया और तीक्ष्ण तलवार हाथ में ले बड़े वेग से माकन्दीपुत्रो के पास आई और अत्यन्त कुद्ध वचनों से बोलने लगी- हे माकन्दीपुत्रो ! तुम लोग मुझे छोड़ कर कहाँ भागे जा रहे हो यदि तुम्हे अपनी जिन्दगी प्रिय है तो तुम मेरे साथ वापस लौट चलो अन्यथा इस तीक्ष्ण तलवार से मैं तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर दूँगी। देवी के इन वचनों का माकन्दीपुत्र पर कुछ भी असर नहीं हुआ उन्होंने देवी की भोर मुड़कर भी नहीं देखा । ४७४ जब देवी ने देखा कि उसके वचनों का कोई असर नहीं हो रहा है तो उसने दूसरी चाल चली । उसने अत्यन्त रूपवती नारी का रूप बनाया | विविध शृङ्गार किये और अत्यन्त हावभाव से माकन्दीपुत्र को लुभाने का प्रयत्न करने लगी। वह अत्यन्त करुण और विलाप भरे स्वर में बोली- हे प्राणनाथ ! आपलोग मेरे साथ किस प्रकार हँसते बोलते थे और चौपड़ आदि खेल खेलते थे । उद्यान में घूमते थे और रतिक्रीड़ा करते थे। क्या ये सब बातें आप लोग भूल गये । आपने इतना निष्ठुर हृदय क्यों बना लिया है ? मैं आपलोगों के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती । देवी के प्रेम भरे शब्दों का असर जिनरक्षित पर होने लगा। यह देख, वह उसी को लक्ष्य कर कहने लगी- हे जिनरक्षित 1तुम मुझे कितना चाहते हो, तुम मुझे एक क्षण भी हृदय से अलग नहीं रखते थे अब तुम्हें क्या हो गया ? प्रियतम ! तुम मुझे अकेली छोड़कर कहाँ चले ? तुम इतने निर्दय कैसे हो गये। जिनपाल तो पहले भी मुझ से भेद भाव रखता था । वह अगर छोड़कर जाता है तो उसे
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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