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________________ भागम के अनमोल रत्न ४७१ और हाथ जोड़कर चोले-देवी आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। आप जैसा कहेगी वैसा ही करेंगे । देवी माकन्दीपुत्रों को अपने महल में ले आई और उनके साथ यथेष्ट काम भोगों को सेवन करने लगी । वह देवी माकन्दीपुत्रों के लिए अमृत जैसे मीठे फल लाने लगी। एक वार रत्नद्वीप की देवी को शकेन्द्र से आदेश मिला कि वह लवण समुद्र को कूड़े-कचरे से इक्कीस वार साफ करे । देवी ने माकन्दीपुत्रों को बुलाकर कहा-"माकन्दीपुत्रो ! मैं इन्द्र के मादेश से लवण समुद्र को साफ करने जा रही हूँ। जबतक मै वापिस न आऊँ तबतक तुम इस महल में आराम से रहना, कहीं इधर-उधर मत जाना। यदि तुम इस बीच में ऊत्र जाओ तो अपने दिल बहलाव के लिए पूर्व दिशा के वनखण्ड में चले जाना । वहाँ सदा वर्षा और शरदऋतुएँ रहती हैं और वह स्थान अनेक लतामण्डपों, विविध फल और फूलों के वृक्षों एवं पुष्करणी तालाब आदि से सुशोभित है । वहाँ विविध पशु पक्षी एवं मयूर के नृत्य देखने को मिलेंगे । यदि तुम्हारा वहाँ भी मन न लगे तो तुम उत्तर की ओर के वनखण्ड में जा सकते हो। वहाँ सदा शरद और हेमन्त ऋतुएँ रहती हैं, वहां तुम्हें अनेक फल-फूलवाटि- - काएँ तथा विविध पक्षो दृष्टिगोचर होंगे । वहाँ और भी कई मनोहर दृश्य दिखाई देंगे कदाचित् वहाँ भी मेरी याद आ जाये तो तुम पश्चिम की भोर के वनखण्ड में चले जाना । वहाँ सदा वसन्त और ग्रीष्म ऋतुएँ रहती है, और वहाँ तुम आम, केसू, कनेर, अशोक भादि वृक्षों का आनन्द ले सकोगे । यदि वहाँ भी तुम्हारा मन न लगे तो तुम वापिस महल में आजाना, परन्तु याद रखना, भूलकर भी दक्षिण दिशा के बनखण्ड में न जाना कारण उस वनखण्ड मे भयंकर विषधर सर्प है । उसकी फूत्कार मात्र से ही मनुष्य की मृत्यु हो जाती है अगर तुम वहाँ चले गये तो तुम जीते जी वापिस नहीं आसकोगे" इतना कहकर देवी अपने कार्य के लिए वहाँ से चलदी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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