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________________ १६ आगम के अनमोल रत्न लोक से चवकर वज्रजंघ का जीव सुविधि वैद्य के यहाँ पुत्र रूप से जन्मा । उसका नाम जीवानन्द रखा गया । उसी समय के लगभग उस नगर में अन्य चार बालकों ने भी जन्म लिया । उनमें ईशानचन्द्र राजा की कनकावती रानी की कुक्षि से महीधर नामक पुत्र हुआ। दूसरा सुनासीर नामक मंत्री की लक्ष्मी नामक पत्नी से 'सुबुद्धि' नामक पुत्र हुमा । तीसरा सागरदत्त सार्थवाह की अभयमती स्त्री से पूर्णभद्र नामक वालक हुआ। चौथा धन श्रेष्ठी की शीलवती स्त्री के उदर से गुणाकर नामक पुत्र हुआ। सौधर्म देवलोक से च्युत होकर श्रीमती के जीव ने इसी क्षितिप्रतिष्ठित नगर के प्रसिद्ध श्रेष्ठी ईश्वरदत्त के घर जन्म लिया । उसका नाम केशव रखा गया । ये छहों बालक सुखपूर्वक बढ़ते हुए बाल्यकाल से ही परस्पर मित्र रूप में खेलकूद के साथ रहने लगे । इनकी मैत्री प्रगाढ़ थी। उनमें जीवानंद आयुर्वेद विद्या में 'निष्णात हुआ। वह अपने पिता की तरह अल्प समय में ही नगर का सुप्रसिद्ध वैद्य बन गया। नगर जन उसका बड़ा भान करते थे । अन्य पाँच मित्र भी युवा हुए और अपने अपने पिता के कार्य में हाथ बटाने लगे। इन छहों मित्रों की वय के साथ मित्रता भी बढ़ रही थी।' एक दिन वे पाँचों मित्र जीवानन्द वैद्य के यहाँ बैठे थे। उसी समय एक तपस्वी मुनि उधर से निकले। उनके चेहरे से ऐसा प्रतीत होता था कि उनके शरीर में कोई व्याधि है। अपने कार्य में व्यस्त होने के कारण जीवानन्द वैद्य का ध्यान उधर न गया। महीधर राजकुमार ने उससे कहा-मित्र ! तुम बड़े स्वार्थी मालूम पड़ते हो। जहाँ -निस्वार्थ सेवा का अवसर होता है उधर तुम ध्यान ही नहीं देते । जीवानन्द ने कहा-मित्र ! आपका कथन यथार्थ है, किन्तु मुझे भव बताइये कि मेरे योग्य ऐसी कौनसी सेवा है! राजकुमार ने अबाब दिया-वैद्य ! इस तपस्वी मुनिराज के शरीर में कोई रोग प्रतीत होता है । इसे मिटाकर महान् धर्म-लाम लीजिये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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