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________________ ४४८. आगम के अनमोल रत्ना ' अमात्य ! तुम्हारा यह अभिप्राय बराबर नहीं है । यह तो तुम्हारा दुराग्रह मात्र है। जो अच्छा है वह अच्छा ही रहेगा और जो बुश है वह बुरा ही रहेगा । क्या यह गन्दा पानी भी कभी अच्छा बन सकता है ? तुम अपने आप को बहुत अधिक चतुर समझने लगे हो। राजा के इस कथन से सुवुद्धि को लगा कि वस्तु मात्र परिवर्तन शील है यह बात राजा नहीं जानता । अतः प्रत्यक्ष प्रयोग के द्वारा ही राजा को भगवान महावीर का यह सिद्धान्त समझाना होगा। भगवान महावीर ने कहा है-"प्रत्येक पदार्थ द्रव्य और पर्यायरूप है । द्रव्य रहित पर्याय और पर्याय रहित द्रव्य हो ही नहीं सकता। 'पर्याय का अर्थ ही परिवर्तन है'-यह बात राजा के ध्यान में भा जाय. इसलिये इसी खाई के गन्दे पानी को स्वच्छ बना कर बताना होगा।" ऐसा विचार कर वह घर आया और उसने कुम्भार की दुकान से बहुत से नये घड़े मंगवाये । उन घड़ों में गन्दी खाई का पानी छनवाकर भरवाया । उनमें राख डालकर उनका मुह बन्द करवा दिया। उन घड़ों को घर पर लाकर सात दिन तक उन्हें रखा । सात दिन के बाद पुनः उस पानी को छनवाकर नये घड़ों में डाल दिया । राख आदि डालकर फिर सात दिन तक उसे रखा । इस प्रकार सात सप्ताह तक. वह नये नये घड़ों में पानी डालकर रखता था और उसमें राख डाल कर उसे स्वच्छ बनाता रहा । इस प्रकार की क्रिया करने से वह जल अत्यन्त स्वच्छ और पीने योग्य बन गया । उसका रंग स्फटिक जैसा निर्मल हो गया । स्वाद में स्वादिष्टं और पाचन में हल्का हो गया । उसमें और भी सुगन्धित पदार्थ डालकर जल को अधिक अच्छा बना डाला। एक वार राजा अपने परिजनों के साथ भोजन कर रहा था अमात्य ने जल भरने वाले के हाथ वह पानी भेज दिया । जल पीकर'
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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