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________________ 'आगम के अनमोल रत्न ४३९ - सत्यनेमि-दृढ़नेमि ... सत्यनेमि और दृढ़नेमि समुद्रविजय के पुत्र थे और इनकी माता का नाम शिवादेवी था । इन सब कुमारों का विवाह पचास पचास राजकुमारियों के साथ हुआ था । इन्हें श्वसुर पक्ष की ओर से पचास पचास करोड़ सोनैया आदि दहेज मिला। एक समय भगवान अरिष्टनेमि पधारे । उनकी वाणी सुनकर उपरोक्त कुमारों को वैराग्य उत्पन्न हो गया । माता पिता को पूछकर इन्होंने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की । वारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया और सोलह वर्ष पर्यन्त दीक्षा पर्याय पाला । पश्चात् गौतम अनगार की तरह इन्होंने भी एक एक मास का संथारा किया और सर्वकर्मों से मुक्त होकर- शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध हुए । ढंढण मुनि द्वारिका नगरी के महाराजा श्री कृष्ण के सत्यभामा रुक्मिणी प्रभृति अनेक रानियाँ थी। उनमें हूँढणा नाम की भी एक रानी थी। उसके एक पुत्र हुआ जिसका नाम ढंढणकुमार रखा गया । राजसी गाठ के साथ कुमार का लालन पालन होने लगा । कलाचार्य के पास रहकर ढंढणकुमार ने ७२ कलामों में कुशलता प्राप्त कर ली। वह कुमार से यौवन में आया । एक वार बाइसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि का द्वारवती में आगमन हुआ । महाराज कृष्ण के साथ ढंढणकुमार भी भगवान के दर्शन के के लिये गया और भगवान की वाणी सुनकर वह भोग से विमुख हो गया और माता से आज्ञा प्राप्त उसने दीक्षा धारण कर ली । अल्पकाल में ही उग्रतप और कठोर साधना से ढंढण मुनि ने भगवान के शिष्य परिवार में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया ।। तेले के पारने में ढढणमुनि द्वारिका नगरी में गोचरी के लिये गये । अनेक घरों में घूमने के बाद भी ढढणमुनि को कहीं भी निर्दोष आहार का योग नहीं मिला । मुनिवर अपने स्थान पर लौट आये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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