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________________ तीर्थकर चरित्र धारण किया। पत्नी को गर्भवती देख उसने सोचा-इस बार भी कन्या पैदा हुई तो मै इस दरिद्र कुटुम्ब का त्याग कर परदेश चला जाऊँगा। पत्नी ने सातवीं वार भी कन्या को ही जन्म दिया । जब उसने पुनः कन्या जन्म की बात सुनी तो वह चुपचाप कुटुम्ब को छोड़कर चला गया। पति के वियोग और दारिद्र्य दुःख से पीडित नागिल स्त्री ने सातवीं कन्या का नामकरण भी नहीं किया। इसलिये लोग उस कन्या को निर्नामिका कहने लगे । नागश्री ने उसका पालनपोषन भी नहीं किया। वह वनलता की तरह अपने आप बढ़ने लगी । अत्यन्त अभागी और माता को उद्वेग करने वाली वे कन्याएँ दूसरों के घरों में काम करके अपना निर्वाह करने लगीं। एक समय गाँव में उत्सव के अवसर पर धनिक वालकों के हाथ में लड्डू देखकर निर्नामिका ने अपनी माँ से लड्डू की मांग की । माँ ने क्रोधित होकर कहा-दुष्टे ! लड्डू कहाँ से लाऊँ ? यहाँ तो सूखी रोटी का भी पता नहीं है । अगर तुझे लड्डू ही खाने हैं तो तू अंबरतिलक पर्वत पर जा और वहाँ से कोष्ठ लाकर वेच दे। उससे जो पैसा आयेगा उससे लड्डू लेकर खा लेना ! हृदय में दाह पैदा करनेवाली यह बात सुनकर रोती हुई निर्ना: मिका अम्बरतिलक पर्वत पर पहुँची । वहाँ युगन्धर नाम के केवलज्ञानी मुनि उपदेश दे रहे थे। निर्नामिका भी वहाँ पहुँची और उनका उपदेश सुनने लगी। मुनियों का उपदेश सुनकर उसने गृहस्थ के वारह बत ग्रहण कर लिये । उसने युगन्धर मुनि से अपनी आयु के थोड़े दिन जानकर अनशन ग्रहण कर लिया है। वह इस समय अम्बरतिलक पर्वत पर अनशन कर रही है । तुम उसके पास जाओ और अपना दिव्य रूप दिखा कर अपनी देवी बनने के लिये कहो।। इधर्मादेव के मुख से यह बात सुनकर ललितांगदेव अम्बरतिलक पर्वत पर अनशन कर रही निर्नामिका के पास पहुँचा और अपना दिव्य
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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