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________________ आगम के अनमोल रत्न ४१९ - - वे प्रामानुग्राम विचरण करते शैलकपुर नगर के बाहर सुभूमिभाग उद्यान में पधारे । महाराजा भण्डुक भी अनगार के दर्शन करने उद्यान में गया । वहां उन्हें वन्दना कर उनकी पर्युपासना करने लगा। महाराजा मण्डूक ने शैलक राजर्षि को रोग पीड़ित एवं अत्यन्त दुर्बल अवस्था में देखा । उसने राजर्षि से कहा-भगवन् ! मै आपके शरीर को सरोग देख रहा हूँ । रोग के कारण आपका शरीर अत्यन्त दुर्वल हो गया है अतः मै आप की योग्य चिकित्सकों द्वारा एवं उचित खान पान द्वारा चिकित्सा करवाना चाहता हूँ। आप मेरी यानशाला में पधारे । वहाँ कुछ दिन तक ठहरे । राजर्षि ने राजा की प्रार्थना स्वीकार करली और वे अपने पाचसौ भनगारों के साथ दूसरे दिन राजा की यानशाला में पधार गये । राजा मण्डक ने चिकित्सकों को बुलाकर शैलक राजर्षि की चिकित्सा करने की आज्ञा दी । चिकित्सकों ने विविध प्रकार की चिकित्सा की। योग्य चिकित्सा और अच्छे खान पान से राजर्षि का रोग शान्त हो गया । वे अल्प समय में ही पूर्ण स्वस्थ और पूर्ववत् हृष्ट पुष्ट हो गये। रोग के शान्त होने पर भी उन्होंने मुनियों के साथ विहार नहीं किया । वे राजा के द्वारा प्राप्त उत्तम भोजन तथा मादक पदार्थों का नित्य सेवन करने लगे । वे आचार में शिथिल पड़ गये । यहाँ तक कि प्रतिदिन की मुनिचर्या भी उन्होंने छोड़ दी। प्रतिक्रमण, ध्यान, स्वाध्याय आदि सब छोड़ दिया । शैलक राजर्षि के इस शिथिलाचार से पन्थक को छोड़ शेष ४९९ अनगार एकत्र हो यह सोचने लगेनिश्चय ही शैलक राजर्षि ने राज्य का परित्याग कर प्रवज्या ग्रहण की है। हम लोग भी आत्म कल्याण के लिए अपने विशाल परिवार, धन, वैभव; का त्याग कर इनके साथ प्रबजित हा गये हैं किन्तु शैलक राजर्षि इस समय प्रमादी और आचार में अत्यन्त शिथिल हो गये हैं। उत्तम भोजन और मादक पदार्थो के सेवन में अत्यन्त आसक्त
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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