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________________ आगम के अनमोल रत्न महामंत्री चाणक्य भी आपके दर्शन से लाभान्वित हुआ था। वीर सं. २१४ में होने वाले आषाढभूति के शिष्य तीसरे भव्यकवादी निव भी आपके ही समय में हुए थे। आपके लघुभ्राता श्रीयक ने भी चारित्र ग्रहण कर उत्तमगति प्राप्त की। वीर संवत २१५ में वैभारगिरि पर्वत पर १५ दिन का अनशन करके आपने स्वर्गारोहण किया। ५. वनस्वामी गौतमगोत्री आर्यवन, आर्य समित के भानजे होते हैं । आर्य समित की बहन सुनन्दा का धनगिरि से विवाह हुआ था। सुनन्दा गर्भवती थी कि धनगिरि अपने साले समित के साथ आर्य सिंहगिरि के ' पास दीक्षित हो गये। सुनन्दा ने पुत्र को जन्म दिया। यही वज्र हुए। वज्र छ महिने के ही थे तब भिक्षार्थ आये, धनगिरि के पात्र में सुनन्दा ने वालक को डाल दिया। वज्र को पात्र में लिए धनगिरि मुनि सिंहगिरि के पास पहुँचे । वज्र का श्रावकों के यहाँ पालन-पोषण होने लगा। आपको जातिस्मरण ज्ञान भी हो गया था। दीक्षा योग्य होने पर आर्य सिंहगिरि ने वज्र को मुनि दीक्षा दे दी। भार्य सिंहगिरि ने इन्हें वाचनाचार्य पद से विभूषित किया। मार्य वन ने दशपुर में भद्रगुप्त के पास दश पूर्वक का अध्ययन किया। वज्रस्वामी अन्तिम दशपूर्वधर थे। अवन्ती में मुंभग देवों ने आहार शुद्धि के लिये परीक्षा ली। वज्र खरे उतरे। पाटलीपुत्र के धनकुबेर धनदेव की पुत्री रुक्मिणी आपके रूप सौन्दर्य से मुग्ध होकर आपसे विवाह करना चाहती थी। धनदेव श्रेष्ठी करोड़ों की सम्पत्ति के साथ पुत्री भी देना चाहता था किन्तु वज्रस्वामी ने इसका त्याग कर रुक्मिणी को साध्वी बनाया । आप आकाशगामिनी विद्या के भी ज्ञाता थे। एक बार उत्तर भारत में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा । तो आप श्रमण संघ को विद्या के बल से कलिंग प्रदेश में ले गये । ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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