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________________ आगम के अनमोल रत्न ३९७. ने उत्तर दिया--"क्या आपके सयम रूपी अनमोल चिन्तामणि रत्न से भी यह कपड़े का चिथड़ा रत्नकम्बल अधिक मूल्यवान है ? काम वासना की क्षणिक तृप्ति के लिये ब्रह्मचर्य का भग ? क्या यह अनमोल ब्रह्मचर्य रत्न को गंदी नाली में डालना नहीं है ? कोशा की यह गम्भीर वाणी मुनिपर असर कर गई । सिंह गुफा बासी मुनि सिंह से शृगाल बनके रह गए । हृदय में दिव्य आलोक हुआ । कोशा के प्रति मुनि का हृदय कृतज्ञता से भर आया । वह बोला-कोशा तू धन्य है। तूने मुझे भवकूप से बचा लिया। अब मै पाप से अपनी आत्मा को हटाता हूँ। तुमसे क्षमा चाहता हूँ। कोशा बोली-मुनि ! मैने आपको संयम में स्थिर करने के लिए ही यह सव किया है। मै श्राविका हूँ। हे मुनि ! अब आचार्य के पास शीघ्र पहुँच कर अपने दुष्कृत्य का प्रायश्चित करें और भविष्य में गुणवान के प्रति इर्षा-भाव न रखें। मुनि आचार्य के पास पहुँचे । अवज्ञा के लिए क्षमा याचना की। अपने दुष्कृत्य की निन्दा करते हुए प्रायश्चित लेकर शुद्ध हुए । पाटलीपुत्र की आगम वाचना के कर्णधार स्थूलिभद्र एक ऊँचे साधक ही नहीं किन्तु बहुत बड़े प्रभावशाली ज्ञानी भी थे । पाटलीपुत्र की प्रथम आगमवाचना में आचारांग आदि ११ अंगों का संकलन इनकी ही अध्यक्षता में हुआ था। एक बार मगध में १२ वर्ष का दुर्मिक्ष पड़ा । साधुओं को भिक्षा मिलनी कठिन हो गई और वे शास्त्र को भूल गये। दुष्काल के अन्त में समस्त संघ ने एकत्र होकर शास्त्रोद्धार के विषय में विचार विनिमय किया। ग्यारह अंगों के ज्ञाता साधु तो मिले, किन्तु वारवें अंग दृष्टिवाद का ज्ञाता कोई नहीं था । केवल भद्रबाहु ही उस अंग के ज्ञाता थे और वे नेपाल की पहाड़ियों में महाप्राण नामक ध्यान कर रहे थे इसलिये पाटलिपुत्र नहीं आ सकते थे । संघ ने स्थूलिभद्र के नेतृत्व में ५०० साधुओं को उनके पास दृष्टिवाद का ज्ञान प्राप्त करने के लिये भेजा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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