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________________ आगम के अनमोल रत्न ३९१ के कहने से इसका विपरीत अर्थ लगाया । बात यहाँ तक बढ़ीं कि महाराज नन्द स्वयं अपने हाथों से महामात्य शकडाल का वध करने के लिए तैयार हो गये । बात इससे भी आगे बढ़ी महामात्य के साथ ही उसके कुल के सभी सदस्यों के वध की योजना तैयार की गई । एक दिन शकढाल राजा के पैर छूने भाया तो राजा ने क्रोध से अपना मुंह फेर लिया और उसके प्रति अत्यन्त उपेक्षा दिखलाई । शकडाल समझ गया कि भव खैर नहीं । उसने घर आ कर श्रीयक को सब हाल सुनाया, और कहा कि "यदि तुम कुटुम्ब को सुरक्षित रखना चाहते हो तो मुझे नन्द राजा के सामने मार डालो। पिता की यह बात सुन कर उसे बड़ा दुख हुआ । उसने कानों पर हाथ रखकर कहा - "पिताजी, यह आप क्या कह रहे हैं ?" शकडाल के बहुत समझाने पर भी जब श्रीयक न माना तो शकडाल ने कहा - " कोई बात नहीं, में तालपुर विष खाकर राजा के पैर छूने जाऊँगा, उस समय तुम मुझे मार देना ।" बहुत कहने पर श्रीयक यह बात मान गया और अपने कुटुम्ब की रक्षा के लिये उसने दूसरे दिन नन्दराजा के पैर छूने के लिये आये हुए अपने पिता को तलवार के चार से मौत के घाट उतार दिया । राजसभा में हाहाकार मच गया । महाराज नन्द ने उठ कर हत्यारे का हाथ पकड़ लिया किन्तु दूसरे ही क्षण आश्चर्य से चिल्ला उठे - "कौन ? श्रीयक तू ने पितृहत्या की ?" "पितृ हत्या नहीं वर्तव्य-धर्म का पालन !" जो मेरे स्वामी का बुरा चाहता है, वह चाहे कोई भी क्यों न हो मेरा शत्रु है, और उसको मारना ही ठीक है । श्रीयक की स्वामिभक्ति से नन्दराजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे मंत्री का पद स्वीकार करने का आग्रह किया इस पर श्रीयक ने राजा से निवेदन किया कि उसका बड़ा भाई स्थूलभद्र बारह वर्ष से कोशा गणिका के घर रहता है उसे बुलाकर मंत्री बनाना चाहिये । श्रीयक की इस प्रार्थना पर महाराजा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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