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________________ आगम के अनमोल रत्न ३८३ उपदेश देने लगा। अपने पुत्र की वैराग्य भरी वाणी को सुनकर, उन्होंने भी प्रव्रज्या ग्रहण करने का निश्चय किया। इस प्रकार जम्बुकुमार, उनके मातापिता, आठ स्त्रियाँ, उनके माता पिता, प्रभव और उसके पांचसौ साथियों सहित ५२७ जनों ने आर्य सुधर्मा के पास दीक्षा ग्रहण की। जम्बुस्वामी ने वीर संवत् १ में सोलह वर्ष की खिलती हुई तरुणाई में दीक्षा धारण की । वारह वर्ष तक सुधर्मा स्वामी से गंभीर अध्ययन किया और आगमवाचना ग्रहण की । वीर संवत् १३ में सुधर्मा स्वामी के केवली होने के बाद आचार्य बने । आठ वर्ष तक आचार्य पद पर रहे। वीर संवत् २० में केवलज्ञान पाया और ११ वर्ष केवली अवस्था में धर्म प्रचार करते रहे । वीर संवत् ६४ में ८० वर्ष की आयु पूर्णकर मधुरा नगरी में वे निर्वाण को प्राप्त हुए । आपके पट्ट पर आर्य प्रभव विराजे । २. प्रभवस्वामी जम्बूस्वामी के पट्टधर शिष्य । ये विंध्याचल की पर्वत शृङ्खला के " निकट जयपुर नगर के निवासी थे। ये विन्ध्यराजा के पुत्र, कात्यायन गोत्रीय क्षत्रीय थे। इनका जन्म वीर सं. ३० के पूर्वे (वि. सं. ५०० वर्ष पूर्व) हुआ था । पिता से अनबन होने के कारण अपने ४९९ साथियों के साथ राज्य छोड़कर लूट मार का धंधा करने लगे। अपने साथियों के साथ घूमता घामता प्रभव मगध मा पहुँचा । जम्बू कुमार के घर, उनके विवाह के दिन, डाका डालने आया लेकिन जम्बू के वैराग्य रस से परिप्लावित प्रवचन सुन कर अपने साथियों के साथ जम्वू. कुमार के नेतृत्व में सुधर्मा स्वामी के चरणों वि. सं. ४७० (वीर सं. १) में तीस वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की। ५० वर्ष की अवस्था में वि. सं. १०६ वर्ष पूर्व (वीर सं. ६४) में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और १०५ वर्ष की आयुपूर्ण कर वि. सं. ३९५ पूर्व (वीर सं. ७५) में अनशन कर समाधि पूर्वक स्वर्गवासी हुए। इनके पट्ट पर शय्यंभव आचार्य प्रतिष्ठिन हुए ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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