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________________ ग्यारह गणधर ३७७ "नित्यं ज्योतिर्मयो." इत्यादि श्रुतिपदों से आत्मा का भस्तित्व और "गालो वे एष जायते' इत्यादि श्रुतिपदों से उसका पुनर्जन्म ध्वनित होने से इस विषय में वे कुछ भी निश्चय नहीं कर पाते थे । श्रमण भगवान महावीर ने मैतार्य को वेद पदों का तात्पर्य समझाने के साथ पुनर्जन्म की सत्ता प्रमाणित की और निम्रन्थ प्रवचन का उपदेश करके उनको उनके छात्रों सहित निर्ग्रन्थ श्रमण पथ का पथिक बनाया। मैतार्य ने छत्तीस वर्ष की अवस्था में महावीर का शिष्यत्व स्वीकार किया। दस वर्ष तक तप जप-ध्यान कर केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष केवली जीवन में विचरे । अन्त में भगवान के निर्वाण से चार वर्ष पहले वासठ वर्ष की अवस्था में उन्होंने राजगृह के वैभारगिरि पर निर्वाण प्राप्त किया । ११. प्रभास श्रमण भगवान महावीर के ग्यारहवें गगधर का नाम प्रभास था । पण्डित प्रभास कौडिन्य गौत्रीय ब्राह्मण थे । इनको माता का नाम भतिभद्रा और पिता का नाम वल था । ये राजगृह में रहते थे। सोमिल ब्राह्मण के आमंत्रण पर उनके यज्ञमहोत्सव में अपने तीन सौ छात्रों के साथ पावा मध्यमा में आये थे। विद्वान प्रभास को आत्मा की मुक्ति के विषय में सन्देह था। "जरामयं वा एतद्सर्व यदग्निहोत्रम्" इस श्रुति ने उनके संशय को पुष्ट किया था परन्तु कुछ वेदपद ऐसे भी थे जो आत्मा की मुक्तदशा का सूचन करते थे। "द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च, तन परं सत्यं ज्ञान मनंतं ब्रह्म" इस श्रुति वाक्य से मात्मा की वद्ध और मुक्त दोनों अवस्थाओं का प्रतिपादन होता था। इस द्विविध वेदवाणी से प्रभास सन्देहशील रहते थे कि आत्मनिर्वाण जैसी कोई चीज है भी या नहीं ? पंडित प्रभास को सम्बोधन कर भगवान महावीर ने कहा"आर्य प्रभास ! तुमने श्रुति वाक्यों को ठीक नहीं समझा । "जरामर्य." इत्यादि श्रुति से तुम आत्म निर्वाण के अभाव का अनुमान करते हो,
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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