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________________ ३७४ आगम के अनमोल रत्न बन्धमोक्ष के अस्तिस्व का भी विचार आ जाता था । इस विचार से आपका मन किसी एक निश्चय पर नहीं पहुँचता था । श्रमण भगवान ने वैदिक वाक्यों का समन्वय करके आत्मा का का संसारित्व सिद्ध किया और निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश देकर ३५० छात्र- गण सहित मण्डिक को आहती प्रव्रज्या देकर अपना छठा गणधर बनाया । आर्य मण्डिक ने ५३ वर्ष की अवस्था में प्रव्रज्या लो, ६७ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान के जीवनकाल के अन्तिम वर्ष में तिराक्षी वर्ष को अवस्था में राजगृह के वैभारगिरि पर निर्वाण प्राप्त किया । ७. मौर्य पुत्र भगवान महावीर के सातवें गणधर का नाम मौर्यपुत्र था । मौर्यपुत्र काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजयदेवा और गांव का नाम मौर्य संनिवेश था । मौर्यपुत्र भी तीन सौ पचास छात्रों के अध्यापक थे और सोमिल ब्राह्मण के आमंत्रण से पावामध्यमा में आये थे । < मौर्यपुत्र को देवों और देवलोकों के अस्तित्व में संदेह था जो " को जानाति मायोपमान् गीर्वाणानिन्द्रियमवरुणकुवेरादीन्" इत्यादि . श्रुति वचनों के पढ़ने से उत्पन्न हुआ था, परन्तु इसके विपरीत " सः एप यज्ञायुधी यजमानोऽअसा स्वर्गलोकं गच्छति तथा अपाम सोम ममृता अभूम, अगमन् । ज्योतिः अविदाम देवान् किं नूनमस्मांस्तृणवदरातिः किमु धूर्तिरसृतमर्त्यस्य” इत्यादि वैदिक वाक्यों से देवों का अस्तित्व भी सिद्ध होता था । अतः पण्डित मौर्यपुत्र का चित्त इस विषय में शंकाशील था । , भगवान महावीर ने देवों का अस्तित्व सिद्ध करके मौर्यपुत्र के संशय का समाधान किया और निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश किया,
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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