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________________ तीर्थङ्कर चरित्र । ___ यह सुनकर सार्थवाह बोला-आपका व्रतं अत्यन्त कठोर है। मोक्ष का शाश्वत सुख विना कष्ट के नहीं मिलता । यद्यपि आपकी हमारे से बहुत कम प्रयोजन है फिर भी मार्ग में किसी प्रकार का कष्टं हो तो अवश्य ही हमें आज्ञा दीजियेगां । ऐसा कहकर सार्थवाह ने आचार्य को प्रणाम किया और उन्हें विदा किया । आचार्य अपने स्थान पर चले आये। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही भाचार्य सार्थवाह के काफिले के साथ रवाना हुए । सार्थवाह अपने काफिले के साथ आगे बढ़ा । सबसे आगे धन्ना सार्थवाह चल रहा था । उसके पीछे उसका प्रधान मुनीम मणिभद्र और दोनों ओर उसके रक्षकों का दल था। उनके साथ आचार्य धर्मघोष भी अपनी शिष्य मण्डली के साथ चल रहे थे। उनके पीछे पीछे अन्य व्यापारी अपने अपने वाहनों के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे । धन्ना सार्थवाह अपने साथ के सभी व्यक्तियों का पूरा ध्यान रखता था और उनकी हर कठिनाई को दूर करता था । इस प्रकार सार्थपति का विशाल काफिला गर्मी की ऋतुं में भी सतत प्रयाण करता हुआ आगे बढ़ रहा था। बड़ी तेजी से आगे बढ़ते हुए सार्थवाह के काफिले ने भयंकर जंगली जानवरों से युक्त अटवी में प्रवेश किया । वह अटवी वृक्षों से इतनी सघन थी कि उससे सूर्य का प्रकाश भी नहीं आता था। सधैन और लम्बी अटवी को पार करते हुए गर्मी की ऋतु समाप्त हो गई और वर्षाकाल प्रारंभ हो गया । आकाश वादलों से छा गर्या आँधी और तूर्फान के साथ विजली चमकने लगी । वादल गरजने लगे और मूसलाधार वर्षा होने लगी। नदी नाले भर गये । मार्ग कीचड़ और पानी से दुर्गम बन गया । वाहनों का आगे बढ़नों दुष्कर हो गया । स्थानं स्थान पर उभरते हुए नदी नाले सार्थ के काफिले को आगे बढ़ने से रोक रहे थे । ऐसी स्थिति में काफिले को वहीं रुकना पड़ा। सोर्थवाह ने अपने साथियों से पूछकर वहीं सुरक्षित स्थल पर अपनां
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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