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________________ आगम के अनमोल रत्न सर्वोत्कृष्ट पराक्रमवाले, अमितज्ञानी, संसारसमुद्र से तरे हुए, सुगतिगति अर्थात् मोक्ष में गये हुए, सिद्धिपथ अर्थात् मोक्षमार्ग के उपदेशक तीर्थकर भगवान को वन्दन हो । महाभाग्य, महामुनि, महायश देवेन्द्र और नरेन्द्रों द्वारा पूजित तथा वर्तमान तीर्थ के प्रवर्तक भगवान महावीर को वन्दन हो। __ प्रवचन अर्थात् आगमों का सूत्ररूप से उपदेश देनेवाले, गौतम मादि ग्यारह गणधरों को, सभी गणधरों के वंश अर्थात् शिष्यपरम्परा को, वाचकवंश को तथा आगमरूप प्रवचन को वन्दना करता हूँ। ___अरिहंत भगवान, केवल अर्थ कहते हैं । गणधर देव उसे द्वादशाङ्गी रूप सूत्रों में गूंथते हैं। अतएव शासन का हित करने के लिये सूत्र प्रवर्तमान हैं। तीर्थङ्कर चरित्र भगवान् ऋषभदेव के तेरह भव । भगवान ऋषभदेव के जीव ने धन्ना सार्थवाह के भव में सम्यक्त्व प्राप्त किया था। उस भव से लेकर मोक्ष होजाने तक तेरह भव किये थे। वे ये हैं- . . धन्ना सार्थवाह, युगलिया, देव, (सौधर्म देवलोक में) महाबल, ललितांगदेव (दूसरे देवलोक में) वज्रजंघ, युगलिया, देव (सौधर्म देवलोक में) जीवानन्द वैद्य, देव (अच्युत देवलोक में) वज्रनाभ चक्रवर्ती, देव (सर्वार्थसिद्धविमान में) प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव । । प्रथम भव-धन्ना सार्थवाह * अम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में क्षितिप्रतिष्ठित नाम का नगर था । वहाँ-प्रसन्नचन्द्र नाम का प्रतापी राजा राज्य करता था । वह अपनी महत् ऋद्धियों के कारण इन्द्र की तरह शोभायमान था । उस नगर में धन्ना नाम का श्रेष्ठी रहता था । जिस तरह अनेक नदियों समुद्र के आश्रित रहती हैं उसी प्रकार उस श्रेष्ठी के घर भनेक निरा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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