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________________ ३२२ आगम के अनमोल रत्न चित्रसेण की पुत्री भद्रा, पन्थक की नागयशा, कीर्तिसेण की पुत्री कीर्तिमती, यक्षहारिल्ल की नागदत्ता, यशोमती, रत्नवती, चारुदत्त की वत्सा, ऋषभ की शीला, धनदेव, वसुमित्र, सुदर्शन और दारुक इन सब बणिकों के कुक्कुट युद्ध के अवसर पर पुस्ती नाम की एक कन्या, पोत की पुत्री पिंगला, सागरदत्त बणिक की पुत्री दीपशिखा, काम्पिल्य की पुत्री मलयवती, सिंधुदत्त की वनराजी, और सोमा, सिंधुसेन को वानीर प्रद्युम्नसेन की प्रतिका और प्रतिभा आदि राजाओं की कन्याओं के साथ विवाह किया था। हरिकेशा, गोदत्ता, कणेरुदत्ता, कणेरुपदिका कुंजरसेना, कणेरुसेना ऋषिवर्द्धिका, कुरुमती, देवी और रुक्मिणी ये इनकी मुख्य पट्टरानियाँ थीं । अपने श्वशुर राजाओं की सहायता से इसने बड़ी सेना तैयार की । वरधनु को सेनापति बनाया और अपनी बुद्धि वीरता और सामर्थ्य से अनेक देशों के राजाओं को अपने आधीन कर लिया। उसके बाद विशाल सेना के साथ ब्रह्मदत्त ने काम्पिल्यपुर पर चढ़ाई कर दी। दीर्घपृष्ठ राजा ने भी अपने सेना से ब्रह्मदत्त का प्रतिकार किया लेकिन ब्रह्मदत्त की विशाल सेना के सामने टिक नहीं सका अन्त में वह ब्रह्मदत्त द्वारा मार डाला गया । ब्रह्मदत्त काम्पिल्यपुर का राजा बनाया गया। किसी समय उसकी आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ । क्रमशः अन्य तेरह रत्न भी उत्पन्न हुए उसकी सहायता से उसने छ खण्ड पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती पद प्राप्त किया । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के पूर्वजन्म के भ्राता मुनि चित्त जो पुरिमताल नगर के एक धनाढय श्रेष्ठी के पुत्र थे। अपने पूर्व जन्म के साथी ब्रह्मदत्त को राज्य भोग में अत्यन्त आसक्त हुआ देख वे काम्पिल्यपुर आये । ब्रह्मदत्त भी मुनि के समीप पहुँचा और उनका उपदेश सुनने लगा। चित्त ने ब्रह्मदत्त को अपने पूर्व जन्म का परिचय देते हुए कहा-“हे ब्रह्मदत्त ! हम एक जन्म में दोनों गोपाल साथीथे । मुनिचन्द नामक साधु के समीप प्रव्रज्या ग्रहण की थी। साधुओं के मलीन वस्त्रों से हमें घृणा थी जिससे हम दसपुर के ब्राह्मण
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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