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________________ २९४ आगम के अनमोल रत्न किया । आगे जाकर यही सुभद्रा महाराज भरत की स्त्रीरत्न के रूप में प्रसिद्ध हुई । नमि ने रत्न, कटक और बाहुबन्द महाराज को भेंट के रूप में दिये। इसके बाद भरत ने गंगादेवी की सिद्ध की । खण्ड प्रपात गुहा में पहुँच कर नृत्यमालक देवता को सिद्ध किया और गंगा के पूर्व में स्थित निष्कुट प्रदेश को जीता । सुषेण सेनापति ने गुफा के कपाटों का उद्घाटन किया । यहाँ भी भरत ने काकणिरत्न से मण्डल बनाये। इसके बाद भरत महाराज ने गंगा के पश्चिम विजय स्कन्धावार निवेश स्थापति कर निधिरत्न की सिद्धि की । भरतचक्रवर्ती ने अपने साधना काल में तेरह तेले किये थे इस समय चक्ररत्न अपनी यात्रा समाप्त कर विनीता राजधानी की ओर लौट पड़ा । भरत चक्रवर्ती दिग्विजय के लिये प्रयाण दिन से ६० हजारवें वर्ण छखण्ड पर विजय प्राप्त कर फिर से अयोध्या लौट रहे थे। भरत चक्रवर्ती दिग्विजय करने के पश्चात् हस्तिरत्नपर सवार हो उसके पीछे पीछे चले । हाथी के मागे आठ मंगल-पूर्णकलश, शृंगार, छत्र, पताका, और दंड आदि स्थापित किये गये। फिर चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न; काकणिरत्न और फिर नव निधियाँ रखी गई। उसके बाद अनेक राजा सेनापतिरत्न, गृहपतिरत्न, बर्द्ध कीरत्न, पुरोहितरत्न, और स्त्रीरत्न चल रहे थे। फिर बत्तीस प्रकार के नाटकों के पात्र तथा सूपकार, अठारह श्रेणी प्रश्रेणी, और उनके पीछे घोड़े हाथी और अनेक पदाति चल रहे थे । उसके बाद अनेक राजा ईश्वर आदि थे और उनके पीछे असि, यष्ठि, कुंत आदि के वहन करने वाले तथा दंडी मुडी शिखंडी आदि हँसते, नाचते और गाते हुए चले जा रहे थे । भरत चक्रवर्ती के आगे बड़े भश्व, अश्वधारी, दोनों ओर हाथी सवार और पीछे पीछे. रथ ,समूह चल रहे थे । अनेक कामार्थी, भोगार्थी, आदि भरत की स्तुति करते हुए जा रहे थे। अपनी नगरी में पहुँच
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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