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________________ २६२ आगम के अनमोल रत्न पश्चिम महाविदेह में विचर रहे हैं । भगवान की ऊँचाई पांचसौ धनुष है और आयु ८४ लाख पूर्व की । १५. ईश्वरप्रभु अर्द्धपुष्कर द्वीप के पूर्व महाविदेह में वत्सविजय में सुसीमापुरी नामकी नगरी है । वहाँ राजसेन नाम के प्रापालक राजा राज्य करते थे । रनकी यशोज्वला नाम की रानी थी। महारानी यशोज्वला ने एक रात्रि में चौदह महास्वप्न देखे । उसी दिन महारानी गर्भवती हुई । यथा समय महारानी ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया । तीर्थङ्कर का जन्म हुआ जान देव-देवियों ने तथा ६४ इन्द्रोंने मिलकर जन्मोत्सव किया । वालक का नाम ईश्वर रखा गया । भगवान ईश्वर के कांचनवर्णीय शरीर पर चन्द्र का चिन्ह बड़ा मनोहर लगता है । युवावस्था में आपका विवाह सर्वगुण सम्पन्न राजकुमारी चंद्रावती के साथ हुआ। पांच सौ धनुष की उँचाई वाले ईश्वरप्रभु ने तिरासी लाख पूर्व वर्ष की अवस्था में वार्षिकदान देकर दीक्षा ग्रहण की । घनघाती कमों को खपाकर भगवान ने केवलज्ञान प्राप्त किया । भाप ८४ लाख पूर्व की अवस्था में निर्वाण पद प्राप्त करेंगे। इस समय भाप धर्मतीर्थ प्रवर्तन करते हुए भव्यों को प्रतिबोधित कर रहे हैं। ' । १६. नेमिप्रभु स्वामी पुष्करार्द्ध द्वीप के पश्चिम विदेह में नलिनावती विजय में बीतशोका नाम की नगरी है। वहाँ वीर नाम के राजा राज्य करते थे । उनको रानी का नाम सेनादेवी था । नेमिप्रभु ने सेनादेवी की कुक्षि से जन्म ग्रहण किया । युवावस्था में आपका मोहिनी रानी के साथ विवाह हुआ । आपका वर्ण सुवर्ण जैसा व चिन्ह सूर्य का है । देह की ऊँचाई पांचसौ धनुष हैं । तिरासी लाख पूर्व की अवस्था में आपने वार्षिक दान देकर दीक्षा ग्रहण की। तथा केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थ प्रवर्तन किया । ८४ लाख वर्ष की अवस्था में आप निर्वाण प्राप्त करेंगे । वर्तमान में आप धर्मोपदेश करते हुए. भव्यों को भवजलधि से पार उतार रहे हैं । . . . ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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