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________________ wM तीर्थकर चरित्र २५३ है । इस नगरी के शासकनृपति का नाम श्रेयांस था । ये शूरवीर प्रजाहितैषी और पूरे न्यायशील थे। उनके शासन में प्रजा हर प्रकार से सुखी थी। वे स्वभाव से बड़े नम्र और दयालु थे। उसकी रानी का नाम सत्यकी था। सत्यकीदेवी सौंदर्य की जीती जागती मूर्ति थी । इसके साथ ही वह आदर्श पतित्रता और परम विनीता थी । जैसा नाम है वैसे ही गुण उसमें थे। एकबार सत्यकीदेवी रात्रि के समय जबकि अपने राजोचित शयनभवन में सुख-शय्या पर सुखपूर्वक सो रही थी तो अजागृत अवस्था में अर्थात् वह न तो गाढनिद्रा में थी और न सर्वथा जाग ही रही थी, ऐसी अवस्था में उसने चौदह महास्वप्न देखे । इस स्वप्न के अनतर जब सत्यकी देवी जागी तो उसका फल जानने की उत्कण्ठा से वह उसी समय अपने पतिदेव श्रेयांस राजा के पास पहुँची । मधुर तथा कोमल शब्दों से जगाकर उसने अपने स्वप्नों को कह सुनाया । स्वप्न सुनकर महाराज ने कहा-देवी ! ये स्वप्न अत्यन्त शुभ एवं मंगलकारी है। तुम्हें भर्थलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। यह मुनकर महा. रानी सत्यको बड़ी प्रसन्न हुई। पतिदेव को प्रणाम कर वह अपने शयन-स्थान पर लौट आई। दुष्ट स्वप्न से बचने के लिये उसने शेष रात्रि धर्म-चिन्तन में व्यतीत की। दूसरे दिन महाराज श्रेयास ने स्वप्नपाठकों को बुलाया और महारानी सत्यकी के स्वप्न के फल को पूछा । स्वप्नपाठकों ने स्वप्न का फल बताते हुए कहा-राजन् । चौदह स्वप्न तीर्थकर या चक्रवर्ती जब गर्भ में आते हैं तब उसकी माता देखती है। सत्यकीदेवी ने चौदह महास्वप्न देखे हैं अतः इनके गर्भ से चक्रवर्ती या तीर्थकर महाप्रभु का जन्म होगा। स्वप्न का फल सुनकर महाराज व प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वप्नपाठकों को बहुत बड़ा पारितोषिक दिया। यथासमय महारानी सत्यकी ने एक सर्वांग सुन्दर ऋषभ लांछनयुक्त पुत्ररत्न को जन्म दिया । तीर्थकर महाप्रभु के जन्म के अवसर
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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