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________________ तीर्थङ्कर चरित्र २४५ गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हुई। तेजोलेश्या के शरीर में घुसते ही जलता और व्याकुल होता हुआ गोशालक बोला--आयुष्मन् काश्यप । मेरे तप तेज से तेरा शरीर व्याप्त हो गया है । भव तू पित्त और दाहज्वर से पीड़ित होकर छ महिनों के भीतर छमस्थ अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायगा । श्रमण भगवान महावीर ने कहा-गोशालक ! मैं छ महिने के भीतर नहीं मरूंगा किन्तु अभी सोलह वर्ष तक इस पृथ्वी पर सुखपूर्वक विचरूंगा । तू खुद ही सात दिन के भीतर पित्तज्वर से पीड़ित होकर मरेगा । गोशालक । तू ने जो कुछ भी किया है वह अच्छा नहीं किया । तू स्वयं अपने इस दुष्कृत्य का पश्चाताप करेगा। इसके बाद भगवान महावीर ने निर्ग्रन्थों को बुलाकर कहाआर्यों ! अब गोशालक निस्तेज हो गया है। विनष्ट तेज हो गया है । इससे भव धार्मिक चर्चा कर इसे निरुत्तर कर सकते हो । भगवान की आज्ञा पाकर अनेक अनगारों ने उसे प्रश्न पूछे किन्तु गोशालक उनका उत्तर नहीं देसका । गोशालक को निरुत्तर और हतप्रभ देखकर अनेक आजीविक श्रमण भगवान महावीर के संघ में आकर मिल गये । ___ हताश और पीडित गोशालक 'हाय मरा ! हाय मरा' कहता हुभा इलाहला कुम्हारिण के घर आया और आम्रफल सहित मद्यपान करता हुआ हालाहला कुम्हारिन को हाथ जोड़ता हुभा, शीतल मृत्तिका के पानी से अपने गात्रों को सींचता हुआ शरीर दाह को शान्त करने का प्रयत्न करने लगा-किन्तु उसकी वेदना उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। अन्त में भगवान महावीर की भविष्यवाणी के अनुसार सातवें दिन गोशालक अपने किये हुए दुष्कृत्य की भाग में जलता हुआ भर गया । मृत्यु के समय उसे भगवान महावीर के प्रति किये गये वर्ताव का ख्व पश्चाताप हुआ । पश्चाताप की आग में उसके अशुभ कर्म जलकर नष्ट हो गये । उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति होगई वह मरकर अच्युत देवलोक
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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