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________________ ~ wwwwwwwwwwww तीर्थकर चरित्र अच्छेरा उन्हीं के समय का माना जाना है। वास्तव नवें तीर्थहर से लेकर सोलहवें भगवान शान्तिनाथ तक वीच के सात अंतरों में तीर्थ का विच्छेद और असंयतों की पूजा हुई थी। भगवान ऋषभदेव के समय मरीचि, कपिल आदि असंयतों की पूजा तीर्थ के रहते हुई थी इसीलिए उसे अच्छेरा में नहीं गिना गया । उस समय मध्यमा पावापुरी में सोमिल नामक ब्राह्मण बड़ा भारी यज्ञ करा रहा था । इस यज्ञ में भाग लेने के लिये दूर दूर से विद्वान ब्राह्मण वहाँ माये थे । उनमें ग्यारह विद्वान-१, इन्द्रभूति २, अग्निभूति, ३, वायुभूति ४, व्यक्त, ५, सुधर्मा ६, मंडिक , मौर्यपुत्र ८, अकम्पिक ९ अचल भ्राता १० मेतार्य और ११ प्रभास विशेष प्रतिष्ठित थे। इनके साथ क्रमशः ५००, ५००, ५००, ५००, ५००, ३५०, ३५०, ३००, ३००, ३०० एवं ३०० छात्र थे। ये सभी कुलीन ब्राह्मण सोमिल ब्राह्मण के भामंत्रण से विशाल छात्र परिवार के साथ मध्यमा आये थे। इन ग्यारह विद्वानों को एक एक विषय में संदेह था परन्तु वे कभी किसी को पूछते नहीं थे क्योंकि उनकी विद्वत्ता को प्रसिद्धि उन्हें ऐसा करने से रोकती थी। वोधिप्राप्त भगवान महावीर ने देखा कि मध्यमा नगरी का यह प्रसंग अपूर्व लाभ का कारण होगा । यज्ञ में आये हुए विद्वान् ब्राह्मण प्रतिवोध पायेंगे और धर्मतीर्थ के आधारस्तंभ बनेंगे । यह सोच कर भगवान ने वहाँ से उग्र बिहार कर दिया और बारह योजन [४८ कोस] चल कर मध्यमा के 'महासेन नामक उद्यान में उन्होंने वास किया । देवों ने समवशरण की रचना की । वत्तीस धनुष ऊँचे चैत्य वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान ने अपनी देशना प्रारम्भ कर दी। भगवान की देशना सुनने के लिये हजारों स्त्री पुरुष एवं देवतागण आने लगे। __भगवान महावीर के समवशरण में इतने बड़े जनसमूह एवं देवों को जाते हुए देख इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण भी कमशः अपने
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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