SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थङ्कर चरित्र को और बलीन्द्र उत्तर ओर की नीचे की बाँह को उठाये हुए थे। इन्द्रों के अतिरिक्त अन्य व्यन्तर, भुवनपति, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों ने भी हाथ लगाया। उस समय देवों ने आकाश से पुष्पवृष्टि की। दुंदुभियाँ बजाई । भगवान की पालकी के आगे रत्नमय अष्टमंगल चलने लगे। जुलूस के भागे मागे भंभा, भेरी एवं मृदंग आदि बाजे बजने लगे। भगवान की पालकी के पीछे पीछे उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल और क्षत्रियकुल के राजा तथा सार्थवाह प्रभृति देवदेवियाँ तथा पुरुष समूह चलने लगा। इन सब के बाद नन्दिवर्धन राजा हाथी पर बैठ कर कोरंट पुष्पों की माला से युक छन को धारण करके भगवान के 'पीछेपीछे चलने लगे। उन पर श्वेत चमर झला जा रहा था । हाथी, घोड़े, रथ एवं पैदलसेना उनके साथ थी । उसकेबाद स्वामी के आगे १०८ घोड़े, १०८ हाथी एवं १०८ रथ अगल बगल में चल रहे थे। । इसप्रकार बड़ीऋद्धि सम्पदा के साथ भगवान की पालकी ज्ञातखण्डवन में अशोकवृक्ष के नीचे आई । भगवान पालकी से नीचे उतरे । तत्पश्चात् भगवान ने अपने समस्त वस्त्रालंकार उतार दिये। उस दिन हेमन्त ऋतु की मार्गशीर्ष कृष्णा १० रविवार का तीसरा प्रहर था । भगवान को बेले की तपस्या थी । विजय मुहूर्त में भगवानने पंचमुष्टिलोच किया । उस समय शक देवेन्द्र ने भगवान के उन केशों को एक वस्त्र में ग्रहण किया और उन्हें क्षीरसमुद्र में वहा दिया। भगवान ने 'नमो सिद्धाण' कह कर 'करेमि सामाइयं सव्वं सावज्जज्जोगं पचक्खामि' कहा । इस प्रकार उच्चारित करते ही शुभ' अध्यवसायों के कारण चतुर्थ मनापर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। नन्दिवर्धन मोदि जनों ने भगवान को वन्दन कर अत्यन्त दुःखीहृदय से विदा ली। '' उससमय भगवान के कन्धे पर सौधर्मेन्द्र ने देवदृष्य वस्त्र रखें दिया। भगवान श्रामण्यं 'अहणकर अपने भाई-बन्धुओं से विदा ले, ज्ञातखण्ड से आगे विहार 'कर गये। भगवान की इससमय तीस वर्ष की अवस्था थी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy