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________________ १८४ आगम के अनमोल रत्न इस अज्ञानतप में कितनी बड़ी हिंसा कर रहे हो। पार्वकुमार ने उसी समय अपने आदमियों को धूनी में से लक्कड़ खींचने की आज्ञा दी । सेवकों ने धूनी में जलता हुभा एक बड़ा काष्ठ खींच लिया। पार्श्वकुमार ने लक्कड़ को चीरकर उसमें अधजले नाग के जोड़े को बताया । कुमार ने 'नमोक्कार मंत्र' सुनाकर नागराज को संथारा करवा दिया। उसके प्रभाव से नागराज मरकर भवनपति देवनिकाय में धरण नाम का इन्द्र हुआ और नागिनी मर कर उसकी पद्मावती नाम की देवी बनी। अर्धमृत सर्प को देखकर वह अत्यन्त लज्जित हुमा । पावकुमार पर उसे अत्यन्त क्रोध आया । कठ की प्रतिष्ठा में धक्का लग गया । लोग अब कठ की प्रशंसा की वजाय उसकी निंदा करने लगे। कुमार के विवेक एवं ज्ञान की तारीफ करने लगे। कुछ समय के बाद कठ मरकर भज्ञानतप के प्रभाव से मेघमालो नाम का तापस बना। दीक्षा भगवान पार्श्वनाथ के संसारत्याग का समय निकट आ रहा था। लोकान्तिक देव आपकी सेवा में उपस्थित होकर अपने कल्प के अनुसार निवेदन करने लगे-'हे भगवन् ! अब आप धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करिये" इतना कह कर और प्रणाम करके वे रवाना हो गये । इसके बाद प्रभु ने वर्षीदान दिया। वर्षीदान की समाप्ति के बाद इन्द्रादि देव आये और उन्होंने सुन्दर शिविका बनाई । उसका नाम विशाला था। सुन्दर वस्त्राभूषण पहनकर भगवान शिविका पर आरूढ़ हुए । भगवान नगर के बाहर आश्रमपद नामक उद्यान में पधारे । वहाँ पौषवदि एकादशी के दिन अनुराधा नक्षत्र में तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। दीक्षाग्रहण करते ही भगवान को मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया । इन्द्रादि देवोंने भगवान का दीक्षा महोत्सव किया । दूसरे दिन कोकट गांव में धन्य नामक गृहस्थ के घर परमान से पारणा किया । उस समय धन्य गृहस्थ के घर देवों ने वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट किये। भगवान ने वहाँ से अन्यत्र बिहार कर दिया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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