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________________ तीर्थकर चरित्र पार्श्वकुमार ने क्रमशः शैशव को पार करके यौवन में प्रवेश किया। वे अब भरने पिता के राज्यकार्य में हाथ बटाने लगे। ' एक बार एक दूत राजा अश्वसेन के दरवार में आकर बोलादेव। मै कुशस्थल नगर के राजा नरवर्मा का दूत हूँ। महाराज नरवर्मा अपने पुत्र प्रसेनजित को राज्य सौंपकर दीक्षित हो गये हैं। राजा प्रसेनजित की प्रभावती नाम की पुत्री है। वह अत्यन्त रूपवती है । एकवार प्रभावती ने राजकुमार पार्श्वनाथ की प्रशंसा सुनी और उसने अपना जीवन उनके चरणों में समर्पण करने का संकल्प कर लिया । वह रात दिन उन्हीं के ध्यान में लीन हो एक त्यागिनी की तरह जीवन विताने लगी। राजा प्रसेनजित को जब ये समाचार मिले तो उसने प्रभावती को स्वयंवरा की तरह बनारस भेजने का संकल्प किया । कलिंग, देश के यवनराज को जब इस बात का पता चला तो वह प्रभावती को प्राप्त करने के लिये सेनासहित कुशस्थल पर चढ़ आया है। उसने अपनी विशाल सेना से सारे नगरको घेर लिया है। महाराज प्रसेनजित इस कार्य में आपकी सहायता चाहते हैं। भव आप जैसा उचित समझे-करें। दूत के मुख से यह बात सुनकर महाराज अश्वसेन यवनराज की धृष्टना पर अत्यन्त क्रुद्व हुए। उन्होंने दृन से कहा-दूत ! तुम जाभो ! मैं यवनराज को पराजित करने के लिये शीघ्र ही सेना के साथ आ रहा हूँ। दुत महाराज का सन्देश लेकर चला गया। महाराज भश्वसेन ने अपनी सेना को युद्ध प्रयाग का आदेश दे दिया। महाराज स्वयं युद्ध के लिये तैयार हो गये। जब पार्श्वकुमार को इस बात का पता चला तो वे स्वयं पिता के पास आये और कहने लगे-पिताजी ! मेरे होते हुए आपको युद्धस्थल पर जाने की जरूरत नहीं। पिता ने कहा-पुत्र! मैं जानता हूँ कि तुम महान् पराक्रमी हो। केवल यवनराज को हो नहीं किन्तु तीन
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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