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________________ तीर्थङ्कर चरित्र' १७९ जब सुवर्णबाहु युवा हुए तब उनके पिता वज्रबाहु ने उन्हें राज्यगद्दी पर बिठला कर दीक्षा ले ली । एक दिन सुवर्णवाहु घोड़े पर सवार होकर घूमने निकला । घोड़ा बेकाबू हो गया और उन्हें एक भयानक जंगल में ले गया वहाँ एक सुन्दर सरोवर के किनारे गालवऋषि का आश्रम था । राजा विश्राम लेने के लिये आश्रम में गया । वहाँ पद्मा नाम की राजकुमारी तापस कन्याभों के साथ रहती थी। राजा की दृष्टि उस पर पड़ी। वह उसके सौन्दर्य को देख कर मुग्ध हो गया । राजा ने गालवऋषि से पद्मा की मांग की। गालवऋषि ने बड़े प्रेम से पद्मादेवी का विवाह सुवर्णबाहु से कर दिया । कुछ समय तक वहाँ रहकर सुवर्णवाहु अपनी राजधानी पुराणपुर लौट आया। ___ राज्य करते हुए सुवर्णबाहु की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। बाद में कमशः अन्य तेरह रत्न भी उत्पन्न हो गये । रत्नों की सहायता से सुवर्णवाहु ने छः खण्ड पर विजय प्राप्त कर ली। वे चक्रवर्ती बनकर पृथ्वी पर एकछत्र राज्य करने लगे। .. एक बार जगन्नाथ तीर्थकर का पुराणपुर में आगमन हुआ। सुवर्णवाहु परिवार सहित उनके दर्शन करने गया । वहाँ उपदेश सुनकर उन्हें जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । अपने पूर्वभव को देख उन्हें वैराग्य उत्पन हो गया। उन्होंने अपने पुत्र को राज्य भार दे दिया और जगन्नाथ तीर्थकर के समीप दीक्षा ग्रहण कर ली। वहाँ कठोर तप करके उन्होंने तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया। कमठ का जीव नरक से निकल कर क्षीरवगा वन में सिंह रूप से उत्पन्न हुआ। वह भ्रमग कर रहा था। दो दिन से उसे आहार नहीं मिला था । उधर सुवर्णवाहु मुनि उधर से आ रहे थे। मुनि को सामने आता देख वह उन पर झपटा। मुनि ने उसी समय संघारा कर लिया । सिंह ने उन्हें मार डाला । समभाव से सुवर्णवाहु ने देह को छोड़ा। मरकर वे महाप्रम” नामके विमान में महद्धिक देवं वने ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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