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________________ NAN तीर्थकर चरित्र १७३ रथनेमि को संयम में स्थिरकर राजीमती गुफा से निकली और अपने साध्वीसमूह में आ मिली । सव के साथ वह पहाड़ पर चढ़ी और भगवान अरिष्टनेमि के दर्शन किये । राजीमती की चिरअभिलाषा पूर्ण हुई । आनन्द से उसका हृदय गद्गद् हो उठा । उसने भगवान का उपदेश सुना और अपनी भात्मा को सफल बनाया । भगवान के उपदेशानुसार कठोरतप और संयम को आराधना करने लगी। फलस्वरूप उसके सभी कर्म नष्ट हो गये। भगवान के मोक्ष पधारने से चौदह दिन पहले वह सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गई। राजीमती की आयु कुल ९०१ वर्ष की थी। वह ४०० वर्ष राकुमवस्था में एकवर्ण सयम लेकर छमस्थ अवस्था में और पाँच सौ वर्ष केवली अवस्था में रही थीं। भगवान अरिष्टनेमि ने अनेक स्थलो पर विहार कर यादवकुमारों को, राजाओं को एवं श्रेष्ठियों को प्रतिबोध दिया । भगवान के उप देश से अठारह हजार साधु हुए, वरदत्त आदि ग्यारह गणधर हुए । ४० हजार साध्धियाँ ४०० चौदहपूर्वधर, १५०० सौ अवधिज्ञानी, १५०० वैकिय लधिधारी, १५०० केवलज्ञानी, १००० मनःपर्ययज्ञानी, ८०० वाद १ लाख ६९ हजार श्रावक एवं ३ लाख ३९ हजार भाविकाएँ हुई। विहार करते हुए भगवान रेवतगिरि पर आये। वहाँ अपना निर्वाण काल समीप जानकर ५३६ साधुओं के साथ अनशन ग्रहण किया । एकमास के अन्त में आषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन चित्रा नक्षत्र में ५३६ मुनियों के साथ भगवान निर्वाण पधारे । भगवान अरिष्टनेमिने कुमारावस्था में तीन सौ वर्ष एवं साधु पर्याय में ७०० वर्ष व्यतीत किये । भगवान की कुल आयु १००० वर्ष की थी । शरीर की ऊँचाई १० धनुष प्रमाण थी।। भगवान नमिनाथ के निर्वाण के वाद-पांच लाख वर्ष के बीतने पर भगवान अरिष्टनेमि का निर्वाण हुआ। .
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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