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________________ तीर्थङ्कर चरित्र १६७ भगवान अरिष्टनेमि के छोटे भाई का नाम रथनेमि था । एक ही माता के पुत्र होने पर भी उन दोनों की विचारधारा में महान अन्तर था । एक भोग की ओर आकृष्ट था तो दूसरा त्याग की ओर । नेमिकुमार जिनवस्तुओं को तुच्छ मानते थे रथनेमि उन्हीं के लिये तरसते थे। रथनेमि राजीमती के सौन्दर्य व गुणों की प्रशंसा सुन चुके थे। वे राजीमती के साथ विवाह करना चाहते थे किन्तु अरिष्टनेमि के साथ राजीमती के विवाह का निश्चय होजानेपर वे मन मसोस कर रह गये थे । अरिष्टनेमि ने जब राजीमती का परित्याग कर दिया तो रथनेमि बड़े प्रसन्न हुए । उनके हृदय में फिर आशा का संचार हुमा और वे राजीमती को प्राप्त करने का उपाय सोचने लगे। इस कार्य के लिए रथनेमि ने एक दृती को राजीमती के पास भेजा। पुरस्कार के लोभ में पढ़ कर दूती राजीमती के पास भाई । एकान्त अवसर देखकर उसने रथनेमि की इच्छा राजीमती के सामने प्रकट की और उसे यह सम्बन्ध स्वीकार करने का आग्रह किया । उसने रथनेमि के सौन्दर्य, वीरता एवं रसिकता आदि गुणों को प्रशंसा की । राजीमती को रथनेमि की भोगलिप्सा पर अत्यन्त दुःख हुआ । उसने कामान्ध रथनेमि को मार्ग पर लाने का विचार किया । उसने दूती से कहा-रथनेमि के इस प्रस्ताव का उत्तर में उन्हें ही दूँगी इसलिए तुम जाओ और उन्हें ही भेज दो। साथ में कह देना कि वे अपनी पसन्द के अनुसार किसी पेय वस्तु को लेते आवें। दूनी का संदेश पाकर राजकुमार रथनेमि ने सुन्दर वस्त्राभूषण पहने । बड़ी उमंगों के साथ पेयवस्तु तैयार कराई । रत्नखचित सुवर्णकटोरे में उसे भरकर वहुमूल्य वस्त्र से ढंक दिया । एक सेवक को साथ में लेकर राजीमती के महल में वे पहुँचे ।।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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