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________________ तीथङ्कर चरित्र जब भगवान वा रानी के गर्भ में थे तब मिथिला नगरी को शत्रुओं ने घेर लिया था। उस समय महारानी महल पर चढ़ी। गर्भस्थ बालक के प्रभाव से महलों पर खड़ी रानी को देखकर शत्रु भाग खड़ा हुआ और महाराज विजय के सामने झुक गया इसलिये महाराजा विजय ने बालक का नाम नमि रखा । शैशव को पारकर भगवान ने यौवनावस्था में प्रवेश किया । युवावस्था में नमिकुमार की काया १५ धनुष ऊँची थी। महाराज विजय ने नमिकुमार का अनेक सुन्दर राजकन्याओं के साथ विवाह किया। जन्म से ढाई हजार वर्ष के बाद विजय राजा ने नमिकुमार को राज्यगद्दी पर स्थापित किया। पांचहजार वर्ष तक राज्य करने के बाद स्वयं की प्रेरणा से एवं लोकान्तिक देवों की प्रार्थना से नमिराजा ने दीक्षा ग्रहण करने का निश्चय किया तदनुसार वर्षीदान देकर 'सुप्रभ' नामक राजकुमार को राज्यभार सौंपकर वे आषाढकृष्णा नवमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में देवकुरु नामक शिविका पर भारूढ़ होकर सहसाम्र उद्यान में पधारे । वहाँ छठ तप के साथ, एक हजार राजाओं के साथ नमिराजा ने दीक्षा ग्रहण की । परिणामों की उच्चता के कारण उसी क्षण भगवान नमि को मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ। दूसरे दिन छठ का पारणा वीरपुर के राजा दत्त के घर परमान से किया । वहाँ वसुधारादि पाच दिव्य प्रकट हुए । नौ मास पर्यन्त छद्मस्थ काल में विचरण करने के पश्चात् भगवान विचरण करते हुए पुनः मिथिला के सहस्राम्र उद्यान में पधारे । षष्ठ तप कर वोरसली वृक्ष के नीचे ध्यान करने लगे। मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी के दिन अश्विनी नक्षत्र में शुक्लध्यान की परमोच्चस्थिति में भगवान नमि ने समस्त घातीकर्मों को नष्ट कर दिया । कर्मों के नष्ट होते ही भगवान को केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया । उसी समय देवों ने भगवान का समवशरण रचा ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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