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________________ तीर्थड्वर चरित्र १३९ तब भगवती मल्ली ने कहा-मित्रो ! जाभो अपनी राजधानी में जा कर अपने अपने पुत्रों को राज्य भार सौंप कर तथा दीक्षा के लिये उनकी अनुमति लेकर यहाँ चले आओ। यह निश्चय हो जाने पर मल्ली सब राजाओं को लेकर अपने पिता के पास आई । वहाँ पर सब राजाओं ने अपने अपराध के लिये कुम्भराजा से क्षमा याचना की। कुम्भराजा ने भी उनका यथेष्ट सत्कार किया और सब को अपनी अपनी राजधानी की भोर विदा किया । भगवती मल्ली ने अपने मन में ऐसा निश्चय किया कि मैं एक वर्ष के अन्त में दीक्षा ग्रहण करूँगी । उस समय शकेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान से आसन के कम्पन का कारण यह मालूम हुआ कि भगवती मल्ली ने एक वर्ष के अन्त में दीक्षा लेने का विचार किया है । उन्होंने अपने जीताचार के अनुसार वैश्रमण देव को तीन सौ करोड़ अस्सी लाख सुवर्ण मोहरों को मिथिलाधिपति कुम्भ के महलों में डालने का आदेश दिया। इन्द्र के आदेशानुसार जुंभक और वैश्रमण देवों ने तीन सौ करोड़ अस्सी लाख सुवर्ण मुहरें कुम्भ के महल में भर दी। भगवती मल्ली ने वार्षिकदान प्रारम्भ कर दिया । वे प्रतिदिन प्रातः काल से प्रारम्भ करके दुपहर तक याचकों को दान देती रहती थीं । महाराज कुम्भ ने भी बड़ी बड़ी भोजन-शालाएँ वनवाई और उनमें बड़ी संख्या में लोग आकर भोजन करने धगे। तीर्थकर का दान प्रहण करके और भोजन-शाला में भोजन खाकर के याचक गण बड़े संतुष्ट होते थे। इस पुनीत अवसर का लाभ लेने के लिये अगणित लोग आते और दान ग्रहण करते । ____आसन चलायमान होने पर पांचवें ब्रह्मदेवलोक के अरिष्ट नामक देव विमानों में रहने वाटे-सारस्वत, आदित्य, वहि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अन्यावाघ, आग्नेय और रिष्ट नाम के नौ लोकान्तिक देव
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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