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________________ तीर्थड्वर चरित्र १२५ M देवी की आत्मजा और विदेह की श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मँगनी करो । अगर इसके लिये समस्त राज्य भी देना पड़े तो स्वीकार कर लेना ।" महाराज की आज्ञा प्राप्त कर दूत सुभटों के साथ विदेह जनपद की राजधानी मिथिला की ओर चल पड़ा। उस समय अंग नाम का एक जनपद था जिसकी राजधानी चंपा थी। वहां चन्द्रच्छाय नामके राजा राज्य करते थे । उस नगरी में अर्हन्नक आदि बहुत से नौ वणिक् (नौका से व्यापार करने वाले) तथा सांयात्रिक (परदेश जाकर यात्रा करने वाले) रहते थे। वे संपन्न थे और उनके पास अपार धन राशि थी। उनमें जीव अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता और निर्ग्रन्थ प्रवचन में अत्यन्त श्रद्धा रखने वाला अर्हन्नक नाम का श्रमणोपासक था । वह भी समृद्ध था । एकवार ये व्यापारी एक जगह इकठे हुए और उन्होंने पुनः- . समुद्र यात्रा का निश्चय किया तदनुसार इन वणिकों ने अपने अपने वाहनों में विविध वस्तुएँ भरी और शुभ मुहूर्त में चंपा से यात्रा के लिए निकल पड़े । गम्भीर नामक पोतपट्टन (वन्दरगाह) में आकर जहाजों में अपना अपना सामान भर दिया। खाने पीने की वस्तुएँ साथ ली तथा मित्र, शुभचिन्तकों और अपने सगे सम्बधियों के आशीर्वाद प्राप्त कर जहाजों में बैठ गये। जहाज का लंगर खोल दिया गया और वह विशाल समुद्र की छाती को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगा । जब जहाज कई सौ योजन आगे चला गया तो अचानक ही समुद्रमें तूफान आने के लक्षण दिखाई देने लगे । आकाश में मेघ छा गये। बिजली चमकने लगी और कानों के पर्दो को चीरने वाली भयंकर गर्जना होने लगी। उमड़ते हुए बादलों के बीच एक भयंकर-पिशाच दिखाई देने लगा । जहाज की दिशा की ओर वह पवन वेग से बढ़ रहा था। उसका वर्ण काजल की तरह काला था। ताड़ पेड़ की तरह उसकी लम्बी लम्बी आये थीं । सूप की तरह उसके कान थे। नाक चपटी
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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