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________________ १०० आगम के अनमोल रत्न - wwwwwwwwwwwww एक दिन महाराज मेघरथ पौषधशाला में पौषध कर रहे थे कि सहसा एक भयभीत कबूतर महाराज मेघरथ की गोद में आकर बैठ गया । कबूतर घबड़ाया हुआ था और भय से कांप रहा था । वह मनुष्य की बोली में बोला-महाराज ! मेरी रक्षा करो। मुझे बचाओ । महाराज मेघरथ ने अत्यन्त प्रेम से उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा कबूतर ! तुम्हें डरने की जरूर नहीं है। मेरे रहते तेरा कोई वाल भी नहीं उखाड़ सकता । तुम निर्भय होकर रहो। इतने में एक बाज आया और मानव बोली में बोला राजन् ! यह कबूतर मेरा भक्ष्य है । मै कभी का भूखा हूँ। अतः इस कबूतर - को आप लौटा दें।, मैं इसे खाकर अपनी भूख शान्त करना चाहता हूँ। मेघरथ-चाज ! तुम कबूतर के सिवाय जो चाहो मांग सकते हो । यह कबूतर अव मेरी शरण में आ गया है । मैंने इसे प्राणरक्षा का आश्वासन दे दिया है । अतः किसी भी स्थिति में यह कवूतर तेरा भक्ष्य नहीं बन सकता । ' वाज बोला-नराधिप ! भाप कबूतर की रक्षा करते हैं तो मेरी भी रक्षा कीजिये। मुझे भूख से तड़फते हुए मरने से बचाइये । प्राणी जब तक क्षुधातुर रहता है तबतक उसे धर्माधर्म का विचार नहीं आता। क्षुधा की शान्ति के बाद ही मैं आपकी धर्म की बाते सुनूँगा । प्रथम मेरा भक्ष्य मुझे दीजिये । कबूतर मेरा भक्ष्य है । मैं मांसाहारी हूँ। अतः मांस खाकर ही- मैं तृप्त हो सकता हूँ। मेघरथ-वाज ! क्या तू मांस ही खाता है ? दूसरा, कुछ भी नहीं खा सकता ? यदि ऐसा ही है, तो ले, मैं तेरी इच्छा पूरी करने को तैयार हूँ। तूझे केवल मांस ही चाहिये तो मैं अपने शरीर के मांस को काट कर कबूतर के बराबर तुझे देता हूँ। फिर तो तू इस कबूतर की मांग नहीं करेगा? ... ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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