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________________ आगम के अनमोल रत्न चतुर्थ और पंचम भव वैताढ्यपर्वत की उत्तर श्रेणी में रथनुपुरचक्रवाल नाम के नगर में ज्वलनजटी नाम का विद्याधरों का राजा रहता था। उसकी पत्नी का नाम वायुवेगा था । उसके अर्ककीर्ति नाम का पुत्र और स्वयंप्रभा नाम की पुत्री थी। स्वयंप्रभा अनुपम सुन्दरी थी। उसका विवाह त्रिपृष्ट नाम के प्रथम वासुदेव के साथ किया गया। वासुदेव त्रिपृष्ट ने प्रसन्न होकर अपने श्वसुर ज्वलनजटी को दोनों श्रेणियों का राजा बनाया। अर्ककीर्ति का विवाह विद्याधर राजा मेधवन की पुत्री ज्योतिर्माला के साथ हुआ । श्रीषेन राजा का जीव सौधर्म देवलोक का भायु पूरा कर ज्योतिर्माला के गर्भ में उत्पन्न हता । गर्भकाल पूरा होने पर ज्योतिमाला ने अप्रतिम तेजवाले पुत्र को जन्म दिया । उसके तेजस्वी रूप को देखकर उसका नाम 'अमिततेज' रक्खा । इधर ज्वलनजटी ने अपने पुत्र अर्ककीर्ति को राज्य देकर चारणमुनि के पास दीक्षा ग्रहण करली । सत्यभामा का जीव प्रथम देवलोक से चवकर ज्योतिर्माला की कुक्षि से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम 'सुतारा' रखा गया । । अभिनन्दिता का जीव सौधर्मकल्प से चबकर स्वयंप्रभा के गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम श्रीविजय रखा गया। स्वयंप्रभा के एक विजयभद्र नामका दूसरा पुत्र जन्मा । शिखिनन्दिता का जीव सौधर्मकल्प से चवकर स्वयंप्रभा के गर्भ से ज्योति.प्रभा नामकी पुत्री के रूप में जन्मा। सुतारा का विवाह श्रीविजय के साथ एवं ज्योतिःप्रभा का विवाह अमिततेज के साथ हुभा । सत्यभामा के पति कपिल का जीव अनेक योनियों में परिभ्रमण करता हुआ चमरचंचा नाम की नगरी में, अशनिघोष नाम का विद्याघरों का प्रसिद्ध राजा हुमा ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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