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________________ आगम के अनमोल रत्न तीसरे दिन भगवान ने सोमनसपुर के राजा धर्मसिंह के घर परमान्न से पारणा किया । देवों ने वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट किये । दो वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहने के बाद भगवान अपने दीक्षा स्थल वप्रकांचन उद्यान में पधारे । वहाँ दधिपर्ण वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए पौष मास की पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त किया । देवों ने केवलज्ञान उत्सव मनाया । समवशरण की रचना हुई । उसमें भगवान ने रत्न-सिंहासन पर बैठकर उपदेश दिया । उपदेश सुनकर पुरुषसिंह वासुदेव ने सम्यत्क्व प्राप्त किया । सुदर्शन बलदेव ने श्रावक के व्रत ग्रहण किये । अरिष्ट आदि ४३ गणधर.बने । भगवान का चैत्य वृक्ष पांच सौ चालीस धनुष ऊँचा था। भगवान के शासन में किनर नाम का यक्ष एवं कंदर्पा नामक शासनदेवी हुई। .. भगवान के परिवार में ६४ हजार साधु, ६२ हजार चारसौ साध्वियों ९०० चौदह पूर्वधर, ३ हजार छसौ अवधिज्ञानी, ४५ सौ मनःपर्ययज्ञानी, ७ हजार वैक्रियलब्धिधारी, दो हजार भाठ.सौ वाद लन्धिवाले, दो लाख चालीस हजार श्रावक*, एवं चार लाख तेरह हजार श्राविकाएँ थीं। महावत में ढाई लाख वर्ण व्यतीत करने बाद भगवान अपना निवणिकाल समीप जान कर समेतशिखर पर पधारे । वहाँ आठ सौ मुनियों के साथ अनशन ग्रहण किया। एक मास के अन्त में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पंचमी के दिन पुष्य नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया । __ भगवान ने कुमारावस्था में ढाई लाख वर्ण, राज्य में पांच लाख एवं व्रत में ढाई लाख वर्ष व्यतीत किये । इस प्रकार भगवान की कुल आयु दसलाख वर्ष की थी । अनन्तनाथ भगवान के निर्वाण के बाद सागरो. पम बीतने पर भगवान धर्मनाथ मोक्ष में गये । *अन्यत्र दो लाख चार हजार श्रावकों का उल्लेख है।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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