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________________ (८७ ) लोकादित्य जो कि वनवासदेशका राजा था और बंकापुरमें जिसकी राजधानी थी, जैनधर्मका भक्त रहा है, ऐसा जान पड़ता है। क्योंकि पद्मालयमुकुलकुलपविकासकसमतापततमहसि । श्रीमति लोकादित्ये प्रध्वस्तप्रथितशत्रुसंतमसे ॥ २९ ॥ चेल्लपताके चेल्लध्वजानुजे चेल्लकेतनतनूजे । जैनेन्द्रधर्मदृद्धिविधायिनि स्वविधुवीध्रपृथुयशसि ॥३०॥ इत्यादि श्लोकोंमें गुणभद्रस्वामीने लोकादित्यको “ जैनेद्र धर्मवृद्धिविधायिनि" विशेषण देकर कमसे कम इतना तो भी स्पष्ट कर दिया है कि वह जैनधर्मका शुभचिन्तक तथा उसकी वृद्धि करनेवाला था। जिनसेनस्वामीका जन्म समय शक संवत् ६७५ और मृत्युसमय शक सं० ७७० निश्चित किया जा चुका है और उनके पश्चात् गुणभद्रस्वामी निदान शक संवत् ८२० तक जीते रहे हैं। इस वीचमें अर्थात् शक संवत् ६७९ से ८२० तकके समयमें राष्ट्रकूटवंशके चार पांच राजा राज्य कर चुके हैं । जिनमेंसे तीनका समय तो निश्चित है-श्रीवल्लभ शक संवत् ७०५ से ७३६ तक, अमोघवर्ष ७३६ से ७९९ तक और अकालवर्ष ८०० से ८३३ तक । श्रीवल्लभसे पहिले शुभतुंग, दन्तिदुर्ग आदि राजा हुए हैं, परन्तु उनका निश्चित समय विदित नहीं है। . १. इस राजाके समयमें हरिवंशपुराणकी रचना हुई थी।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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