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________________ (८१) दानशीलता और न्यायपरायणतासे अमोघवर्पने अपने अमोघवर्ष नामको इतना प्रसिद्ध किया कि, पीछेसे यह एक प्रकारकी पदवी समझी जाने लगी और उसे राठौरवंशके तीन चार राजाओंने तथा परमारवंशीय महाराज मुंजने भी अपनी प्रतिष्ठाका कारण समझकर धारण की। इन पिछले तीन चार अमोघवोंके कारण इतिहासमें ये अमोघवर्प प्रथमअमोघवर्पके नामसे उल्लिखित होते हैं। अमोघवर्ष राष्ट्रकूट वा राठौरवंशके राजा थे। राष्ट्रकूटवंशीय राजा तृतीय कृष्ण, ध्रुवराज, कर्कराज, द्वितीय कर्कराज, और द्वितीय प्रभूतवर्ष आदिके दानपत्रों तथा शिलालेखोंसे इनके पूर्व राजाओंकी परम्पराका पता इस प्रकार लगता है—१ गोविन्दराज, २ कक्कराज ( पहिलेका पुत्र ), ३ इन्द्रराज (पुत्र), ४ दन्तिदुर्ग अपर नाम वल्लभराज (पुत्र), ५ कृष्णराज अपर नाम शुभतुंग (चाचा, कक्कराजका द्वितीय पुत्र ), ६ गोविन्दरान द्वितीय, अपर नाम वल्लभरान (पुत्र), ७ ध्रुवराज अपर नाम निरुपम ( छोटा भाई) ८ जगत्तुङ्ग अपर नाम गोविन्दराज तृतीय वा प्रभूतवर्ष और इनके पुत्र ९ अमोघवर्ष प्रथम । अमोघवर्षने शक संवत् ७३७ से ८०० तक राज्य किया है । उस समय राष्ट्रकूटोंका राज्य सारे महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रान्तमें फैला हुआ था। सिवा इसके राठौर राजा दन्तिदुर्गने सोलंकी राजा कीर्तिवर्मा (द्वितीय) का महाराज्य छीन लिया था, वह तथा १. अर्थिपु यथार्थतां यः समभीष्टफलाप्तिलब्धतोषेषु । वृद्धिं निनाय परमाममोघवर्षाभिधानस्य ॥ (ध्रुवराजका दानपत्र इंडियन एंटिक्वेरी १२-१८१)
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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