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________________ (६६) .. यद्वा कवीन्द्रजिनसेनमुखारविन्द- ... निर्यद्वांसि न मनांसि हरन्ति केपाम् ॥ __ अर्थात्-इस महापुराणमें धर्म है, मुक्तिका मार्ग है, कविता है और तीर्थंकरोंका चरित है । इसके सिवाय इसमें ( पूर्व भागमें) जो जिनसेन कवीन्द्रके मुखकमलसे निकले हुए वचन हैं, वे किसके मनको हरण नहीं करेंगे ? 'आदिपुराणमें सुभाषित कविता जितनी चाहिये उतनी मिल सकती है । इसके लिये कहा है: यथा महायरत्नानां प्रसूतिर्मकरालयात् । . तथैव सूक्तरत्नानां प्रभवोऽस्मात्पुराणतः॥१६॥ सुदुर्लभं यदन्यत्र चिरादपि सुभाषितम् । . . सुलभं स्वैरसंग्राह्यं तदिहास्ति पदे पदे ॥ २२ ॥ अर्थात्-जैसे बड़े .२ कीमती रत्न समुद्रसे उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकारसे सूक्त वा सुभाषितरूपी रत्न इस पुराणसे । अन्य ग्रन्थोंमें जो कठिनाईसे भी नहीं मिल सकते हैं, वे सुभाषितपद्य.इस ग्रन्थमें स्थान स्थानपर सहन ही जितने चाहो उतने मिल सकते हैं। . ___ आदिपुराण जैसे काव्यकी कविताकी उत्तमता दूसरेके कहनेकी अपेक्षा स्वयं अनुभव करनेसे ही भली भांति मालूम हो सकती है। इसलिये हम अपने पाठकोंसे प्रेरणा करते हैं कि वे इस अद्वितीय ग्रन्थको स्वयं विचारपूर्वक स्वाध्याय करके देखें । यह ग्रन्थं यद्यपि अभी तक मूल और हिन्दी टीकायुक्त नहीं छपा है, तो भी मराठी जो कठिनाइ सहज ही ताकी उत्तमता हो सकती
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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