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________________ (६१) अर्थात्:-वह कविपरमेश्वरं कवियोंके द्वारा पूजने योग्य है, जिसने वाणी और उसके अर्थका जिसमें संग्रह है, ऐसा सम्पूर्ण पुराण बनाया। इससे यह भी मालूम पड़ता है कि, कविपरमेष्ठीका बनाया हुआ एक ऐसा पुराण है, जिसमें समस्त ६३ शलाका पुरुषोंका चरित्र होगा और प्रायः उसीके आधारसे महापुराणकी रचना हुई होगी। __ और यही एक क्यों वीसों प्रमाण इस विषयमें दिये जा सकते हैं कि, आदिपुराणके पहिले अनेक पुराण ग्रन्थ थे, जिनमें आदिपुराणकी कथाका अस्तित्व था । हरिवंशपुराण, पद्मपुराणादि ग्रन्थ आदिपुराणके पहिलेके बने हुए हैं और उनमें आदिपुराणका बहुतसा कथाभाग मिलता है। इसके शिवाय आदिपुराणकी उत्थानिकाके निम्न श्लोकोंसे भी मालूम होता है कि, जिनसेनके पहिले अनेक पुराणकार हो गये हैं, नमः पुराणकारेभ्यो यद्वक्राब्जे सरस्वती। येषामन्यकवित्वस्य सूत्रपातायितं वचः॥४१॥ धर्मसूत्रानुगा हृद्या यस्य वाङ्मणयोऽमलाः। । कथालङ्कारतां भेजुः काणभिक्षुर्जयत्यसौ ॥ ५१ ।। पहिले श्लोकमें पुराण बनानेवालोंको नमस्कार किया है, जिनके वचनोंके आधारसे दूसरोंने ग्रन्थ वनाये हैं और दूसरेमें काणभिक्षु, १. आदिपुराणके भाषा और मराठी टीकाकारोंने इस श्लोकके ऊपरके श्लोकमें । जिन जयसेनकी प्रशंसा की है, कविपरमेश्वरको उनका विशेषण (कवियोंमें श्रेष्ठ) समझ लिया है। परन्तु यह केवल भ्रम है। कविपरमेश्वर एक कविका नाम है।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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